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नाराः २०७
सर्वासमा दोक्त रहनुतर माननार कामानिकता कसा अनेक प्रकारे उदराजनाएक बिमानते न देता देवताकहिये दिन देवलोककानुनी देशात
विमानंनी
सडसिङ्गावेपिंचरात्रासुर | ३३ वे मालिया एए रोग हावमा इन एलोगस्से एग वैमानिक सर्व अतिशय ताक तलाक तर कालो देवतानो कहियो अनादर सत्यमार्गमा भने जो को कसावे तीर्थकर देव दिनादिवदिगतस्तु अपयवसितसादि मिश्रतानाहिवालन प्रकार करे कही (कालना है
दिवसा
एक
देसंमि तेसने परिद्धिसिया | इस काल विसा गं तिमिबुद्ध वहिदास काव्य शितल वशितिमा श्रीमति सतिपुण साक्षिक कामे सामरो उत्कृष्टपणेति प्राउ मारितोसादिन्यादिसहि जेलिका जिते कायमिति हिश्य हुन साइया सर्व वैसिया विय २० सादियसागरं । उके से विसवे समिकाए शेती दस सहस्रवरसनी २८ वल्पमल्कनी उष्टपद्दति आऊषो अंतरज्ञदिक धन्य घो ई -देवतानी
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जिजली सदाऊ
पव जवन यति ब्ली दिकनीजधन्य
ऊहलेलं / दस वाससह सियारयतिग्ममे गंउ उ को सेल डिसवे (वंत रानु रुन्नेल एक जूनैव रसला एकें अधिकष्ट पत्योमा आवाजात निंदिता ज्योतिषी मानी आऊ बना एदेशनी जघन्य
दस मदरसा
एमेदा सलरके एएसाहिये । लिउ वहम लोगो | जो इसे सु ऊ सुदेवलोकविदेवता नान्यत
एकपल्ययन
//शेय सो दम्मे मिलेल एगेचयलिय मं२सागरासा
दसासम सिया र सिर्जनमे थोकितो जांणदी २० रोपनी उनामिति मोडई
ऊदलिया
दो चेव सागरास कोर्स
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