SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ वचन समादर करी जगन जीव स्पंजचार जै । स्वननी समाहरणा तत्व विरूप जेमिध्यात्वते हनिर्जर वचनसारवदने उत्तराध्यः म्मज्ञेविसादेइ (मिचेच निरस मालया एलं संतेजार किंगति व इसमाहरण प: १५७ एक दर्शनसम्युक्तनाजेपर्याय योग्यपदार्थनंदने योग्य राजेपदार्थतेक्वनसमा हलनंद नि सम्युक्त परम ना पर्यायविनिर्मला कराने अर्थादिकने अन्यासे हिलोयां WW समाहरणं दस या वे विसोत्ता (सुलह संयम दोगने विषे रुही परेका या नेपक्तदाते काय सभा हरकही येते करीबन् जी वस्उपार काय समाधार या एलं ते जीवेकिंडा ए नास्त्रिनापर्याय नेट्सर्वदोषी यथाख्यातास्त्रिय निर्मल कराने निर्मलकरे यति काय समर या एकं नवे विसोदे (चरितयक वे विसोहसा (अरकायच नायकरमेक संकजियाख्यातानि तो निर्मल कम करें ऊतर सर्व आरजे केवी या मनाश तिरी सकलार्थ यत्रेय याचना उपनिधाय यास्तवारित्र पूर वे यस्वारित्रमोद बेदनीय आश्ना कर्मकर्मवनोजायें व्याम्वास्त्रि रिचं विमोहेन्मद्रकायचरितं विसो देना चचारिकेवलिकममसे वे तो पञ्चा सिझतिबु करें कर्मकाकषाय निहारी नेता सर्व र पापकर्मनात ज्ञानसंपन्न सहितय करनवनजीव स्फे दायें करेक्ष्यकरमोद जायें सतिमुञ्छति परिनिहाय ति सिरहामा संयन्न याएणसं तेजी देकिंड। विमा निर्मल करे क व मनें सारा एतावता वचनना याए व इसमाहारदंसलय वेविस हे देति बोलोमीचजदिपा र जेंनिवर्तावें धनोजे दोहिलो ५७ मोनोमिक निरजरे पावें. बोहियत्तनिछत्ते लबो दियतं चनिरे 'संयमयोगका पद स्त्रियनेट्कायो पश्मादिकले विसोधेनिर्मलकरे जयार जे ૨
SR No.650033
Book TitleLokashaha ki Hundi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages424
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size200 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy