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________________ उपजावें विनयनीप्रतिपत्त्रिकरिखाने अंगीकार विज्या विनयजेलें एवोकोजीव नहीं नो अवलवादादिकनो नारकी तियचनी गुरुजी आतनावदनस्व-जाव परिखिं योनिहरु सखायएएस दिलाय डिलिंडलयति विलयमिवणे जीवे चासाय बासीले निरश्यति मिति अनंनुष्यनी दुर्गतिलिनादिरुनावताना अननोन लिोसंजलिनेंनक्ति हाथ जो मिवेनऊमानांतर देव दुर्मत्तिक मिश्री खोत प्रतिशयस्यानिवारे नीप्रति करनि संसारमा हिरो मनुष्यनीतिदेवतानीति रिरक ओलियम एक रसदेवऽगाइ ७ निध। वन्नसंडलसत्रिवमाणयाएमा कस्सदेवसो अतिशय बासि विशेषेकरी सोधे निर्मली करें मोरूसभूतिनाकार सम्पक्ता दिनानिर्मल सला कार्य का मस्त वें मा मोहरूपी मति की प्रशस्त नलाप्रसंसा कारिया विनय मूलभूत ज्ञानादिक मोग विरू गाई उनि बे६६ सिद्धिसो गाई दिसाह | साईचविषयलाई सञ्चका सादे अन्ते रोमन एक जीव ने विनय मार्ग देषा] उरु च्यामलियायामात्रनिदोष का सिदेत आलोय उरुरु है शिष्यच्या या आदावे विनय वत करें. करी जगवन्जीवरकं उ यायनी आलोयामायारूप यववेकी वाचि वित्ता सवे || आलोय या एल संते ओवे किंडलयति आलोय ल्याए चाल्मनी यात पवे विवेोते (राज्याने वि के मोह मार्गने विबिध करल हावली के वो मन्ता संसारनी उरण करनिंउड्रीनं व 1 परितमिलरूपजेराल्य अंतरायनो वृद्विनो करण बरतेन ARCAD परहाका नियालभित्रादेरसास जाणं ( मोरकन ग्गदिग्धानं प्रणेत संसार माया ( ६रण करें तिजा उनले सरसर जना पहिबज्योबे नाव सरल व जीव मायारहितत्रानो नपुंसकनौन अंगीकारन करें लावले पार लावेचडयलिन ज्ञानयमिवलेोयल जीवेन्समा इइजीवेयं। नपुंसकवेयंचनबंधड् लो
SR No.650033
Book TitleLokashaha ki Hundi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages424
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size200 MB
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