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परिसघल यर पंचिदियतिरिस्काज] लिए दिक्षता नववद्यति। जदिलय परिसघलयर पं विदियतिरिस्क पत्रवरण- जापानद्यति किं समुचिमा परिसमा घल यर ये विदिय तिरिरकाना मिहिता नववी ति गतवतिय रिसाल यशप विदियतिरिकाडा लिपटि तिगादा दिन विवोति। जादिसमुमिया रिसघलयर पंचिदियतिरि काजातिए शिता उववद्यति किपद्यत्र यस विमनुथ परिसंघलय विदियति रिकाडा लिए दि । तनवांत त्रय समु त्रिमनुयय रिसप्यव लयश्वचिदियतिरिरका डा णिपतिव प्रतिपद्यतान पद्यतन दिगव कतियथ परिसप्पघलयरविदियतिरि रकाना गए हिताव
छति किं छात्र हितावद्येति छत्र॥ विपत्रपति पत्रपतिावच्छति वा जविद यशां विदिय तिरिस्काना लिए हितावदति किं मिरवद यापेचिदियति रिस्क डालिए हितानद्यतगझवकं तिखदा चिंदियतिरिरका नातिए हिताच तिगां (द) दित) विश्वद्यति। जदिसंबरवारणं चिदियतिरिकाजा । हितावद्यति॥ १११३
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