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शादिक लासजस्पश्हेदेवा लोगनघ नुषिये
पियानोगला तो दिवार लानमा निश्व हे देवानु प्रिये एवं खलु तुम्ही चलु तुम्हें दिवाणु पिय एवं मामा बडिमा रंग श्रद्ध हमारा दि
धवासहजसा घिऊय
चितिकांत तिक्रमश ऊत म्हारा ऊरवि प्रकाम करणहोतील अननिनदमय नमपुरणाहाती कुलरइवि नम के जासमान र विषुश्दी दाममान मिराश्रयदाती बावर्तसमुकसमान
पकरीसहित ७१ ॥
जागुणमासादिक यावित्रिचंताएं । अम्लके । ऊल्दी व कुलपत्र याकूल व डिंसये कुल:- मानव सोलपणा होती ऊलरई विषयको प्रकामकरण होती ॐ कुलर विषघनीनी कुलर विष कुलर वितिनिरवाद लरइ वि० तिल कममान तिन प्रकरणदार लरइविषई दिनकर सूर्यममान् परिश्राधार आधार हे कारण विषद्रव करणार
तिलय|ऊल कि त्रिकरं । ऊल दिरणय रं कुलाहार कुल [हनं । कुल बित्तिकक एक दि सिव्यापक नत्र कररणहार करणार ताकुलरई विषपादपषममाना रिक्षन करणार कुलर विषइनंदि कलर विष इजम नत्र सम्पग आश्रय मरणा है। कुलर विष विविधधको मंत्राला दाघयागयेहना
गली मकवा
जन दिक। कुलजस्म करो कुलपाय वै। कुल विषयक। मुकुमालपा खिपाये
लिम्पमादितरा पांचइडी सहित सरीरजे स्वनिकादिक मसातिला तियानाये तिणिकरी मान उन्मान माने वही उठा नही हना लपत दिकव्यंजन गुण सहित
कल
अदाशयड पुगगं गं दिसला वेडमा समावाय मार
राष
__पुत्रनलासस्य इहे दे० सौष्पनउला नऊस्प राज्य न उलाल अस्पर्श देसरउ || राजा श्रमान्मम हत३ का सदम को छन् रंबल वाहन एमा त राज्य नागाযबार
पुत्र लाना दिवाया मुरकला तो दाराला तोरदार हलालो नव मास अत्यंत प्रतिपूर्ण रानरिसाठा मात
अहोरात्र
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= कुलर इविष परब तस
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