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________________ वनाथ काश्म कहना श्रा तिघुघमारा एवं दयामय गंदाज यश्ता न होता जय श्खत्त्रियवरवस हा नईम निरनी चार न्यान दर्शन चारित्र कराजी पताथ काटो हिलातीय अवसिकरज यावेइंडिया जीता वली पालव सामेव अतर हिंगगारण दमणच शिरात्र हि जिया इंडिया हि। ई दिया हिं। जिये चपा ले दिसम प्रकारे माधुन जान विधन इसक देव मोध्यनगरमा हे "निहरण रागदेषरूपी या बेदेमल्ल "बाह्मन्यतरे जये करीतिर विष उध पुणिवला बसत आहो थममं जिय विग्घा वियव साहिं तं दिवं सिद्धिमज्ञेखिदा हिरा गादास मल्लातिवेश धियध अत्यंत नाथ काळि जि मर्दउ आठ कर्म रूपा या मनुवारी धान उत्नममद अक्कईकरी प्रमाद रहि तथ कउग्रउ लाउ जयजय परोपामिनमृद्दियन तनून जय२ व्यवियां प्रधानषत्तसमानकल्या • पमजयर पा मिलकल्याणामिइया पामि माहे कषायविधयादि के कोटिल्यपरिहारकक यबकास ( मद्दा दिय कम्म मधू । शात्रामा मुक्काणीअप्पमत्रो हराहा वीरत्रैलोक्यरूपीयारगघरमादे पामन आवरण र हित सर्वेशिष्ट केवल न्यानयनचा इवली वीरात लोक रंगमशेः पावयवितिमिरं मणुचरं केवल गाये गय कुटिलसरमा वली अहो रंगति रिंग करी । रमि पदप्रति ऋषता दिकता र कारकारला "हाणी करी परामरूपाणी क न्यानदरमचारिवरूपमा विरणकारी लाउमा रगतिशी अपनाएका गोमाकडील मामीजेय रखती lated श्रीमति रा विनिमा मोति सकृय मकरायणदण दृष्ट स्पायनदाद मासरू पत्र मुरका यन Endin Badshal प
SR No.650029
Book TitleKalpa Sutra
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
Author
PublisherNagor
Publication Year1677
Total Pages234
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size100 MB
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