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________________ कानन रेखार वन स्वादयक स्वाचा कलात तश्या सवार मृगसेवका ||दिकाले घेरेबंधू परमामायमिनार की संविदोदा गतव समास रंग स्पेतिकै में हिंसा रस सुगीस दिपाच तिमी काना य इसी वितनिवेदने को घी को इनघाट र मोनाकोई कि होर दीएका कीराजीम) वशिशिनीगतिनन दीतिलनेमान मृगदामि दीदी कमीवाट रंग यावित रंगरंग करेबघाट ३ वागव से नदियावयाकुलयोमदीयाल घोमथेो माम दिघीमाविशाल बोदरायो नरदेव देङिमदनप्रसार नाशा वाजे सिंहासनी यदन लि सुविशाल रंगनी दमट ने दलीय नीलत्रगुट वनगिरीतश्वरनिरखाबरवरध्या दीगढ करणीदिनकरणी वरणीश्वते दादी तरुवर एक गरजयते का नृपतिदयमा हओ तर वरमाल बेदवों लवेघमच्या लेवेंत्याल मनलाग् काव्यास फायदा माईनेमाई सुरत सेवादाराव ६ बोली दागयमी वतवरेवेत प्रदेश नपरे घन सोमदियनिय शिक्षित ते नाणे प्रकाश | मामिला फोकटकासीनताबोध बादि प्रोगामी वाका रेगे तो करणीमादि शीताकसमान घटितसटित बजट org
SR No.650028
Book TitleChandraras Patra
Original Sutra AuthorMohanvijay
AuthorKesharvijay
PublisherYakruli
Publication Year1760
Total Pages208
LanguageMarugurjar
ClassificationManuscript
File Size97 MB
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