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________________ ० ० कानिया: व्याजदारु० कान व्यामि हरिकायस ससा उपकारा या वि झण्डा नियन उन्दिय्नाध र प्याजिसारखान fa आचारांप्यपाये|अप्यबीए॥ अप्यहरिए अप्यो से पप्पूदए। शिंगा (पेटोग शरार शीना लिदाः शतविया किती कानीिल गो श्रमादिक की इडिश्नः ३ 5: या०यां दर्शनात सहितः प्रमाटी | स०की लिया डाला सेवते नाः स०समायाजालातला जाना उक्त प्याबाहिरका प्रकार निदान कर हमारा दिन पूर्व इला४ आहारते माहिताइ तिन लफलल श्यांसहि दंगम हिटा / मक्का || संताए तिवारीले सूक्त निरदीनुलोम बजातेः स०रागरहित कोन ई दावाय य०यां इते या लाई मिश्रि कहानतिजा वितेला का सु रिगचिदा उभिरं विसा ० आहार नोनको मा इतिवर हिया २॥ ततेो | संजयामेव झुंजेन वा । पीएऊ गाजिव गोसेवाएवा | जुत मा०या पाया सेवते आहार से० ए० एकां सुन ति साधुः याली इ म०प्राव कोतमानाथंडिल जाताइतिकां | परिहव तेवडिल का एति कहइबई: प्य वा सूकरान नई सकडूः एवा (पाटा एवा || सेतंमामा एएगत (मक्क मेका (गत /मक्क्क् मिशा ||||||| ( नू
SR No.650018
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages594
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size220 MB
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