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________________ २२२३ ०नं नाव | ०४: ए०ते एक वह किमः से०के सेवन एक सामानावार जातिवा २०४ ०को उपा ससिष्य एव सतिः ०कि.ि सा याक वायराइयरे दियाऊ मे दिएगंग्रचं तेक मंत्र से वति । अयमा उसे यासाच्छ 17055: १८०५मः ख० नि जि० साधननुः लि० साध्वीन संसारमा दिनु वाता दनिरताला है यो यानादिक श्राध्दायोग्य लाडवायोग् बापूसा जातिः नाभ्या किरियाया विनवतिरीराखखतस्स | निरक्तस्सवा२॥ | सामग्गियं त्रिवे वातःसहाः जाजन प3 हे साना तसा हा उक का काला कांति स्थानक ३वसान करत्ति संस्था इति कल्प: समा स्वामी जंबू स्वामा सतिना नकार कुण कि कार लावेक รสริฟ रामटेकमा किमार मि। अथ संगृदमी गाथा लिख्यते ॥ ॥ कालानुरागा अतिकं तावेव पदिकुंवारियान योग्यका 9 जावा कियाइाम्रा इवाकता सर्वपवि हांद्धिमान लागते पक्रियाको तिनाउ है सास्ती उनी सुधको सिकाइकांरार इकर कथित को इक साहब सतोताना तीसरे गृहस्वनधरिजात काहीएक खाताको वियासाठ नश्लाकलाम या अनिकेतारा॥ ३ारामदाद्यास मदाय कि रियाय । ॥ शक्ा शिहास इसीते २०४ library.org
SR No.650018
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages594
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size220 MB
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