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________________ | सत्ता निकालातही ज्ञान निगममक रिचाणाबित नका बिदाब मना मिवैयादवला ●निवारी ते णिकराजानई शिकनाई तस्म तंसारपुत्रा याग निघ की महामो टा घोमा बिया सेराजान नागमोटादाघा पाबलिको स्यमं वलीरघनवम निवार पाने] ऋणिक राजा थना ग्राहकधरा हार॥ हा वाया बांधणदार मऊसर चित्र तिए तापमागमाय ग्रामिक दाय ॥ तुमहं श्रासा श्राराधस उत्तपा सिंघा गाणारा पिढ रहा रहातपात शिया या संत सार सर्वारणादिकाकरी। सर्वधनिका नेकरी सं योगी दाम लिवाता 民 छात्र अनुमय सिंगार पयदिय ता लियदि उत्सव आसय अत्र पवना व सविठाए सघछ सबल रंग लेकर सर्वपरिवार इस सर्वादिखथम करा सर्ववितिमान सर्वचिन्त्र छात्र मागी सर्वमन्वभावनई सर्वकालगंध करकर दायका नई 'ई विस्तार करा वेसनईय दिवेकर परिवारका रानई मानानामाला ल त्रीय सङ्घबालगं समुदां सवादारापं सवित्री सविता सागंजम ग्रामलिश्कानयामिय्जब कच को धनबलवत्र माप रिवाजी ताटी लावयाल निगारपाणी नवसारखे जेहन दनाई बीजाना मर के हन कारमुकटादि मर्वटितानि शतेनानिनाद मोटा सर्वकाममोतिरादि मोटवनकटकन मोरचरिवारनंदसमुदा केकर। कनकनिक ममुदायेकरा व्याकरा शरणारा व्हा लालंकारिएप सवान मियस द्दस लिगादिपं महार ही मदयालु भी महया बालां मयासमुद
SR No.650017
Book TitleUvavai Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKesharvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages211
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_aupapatik
File Size100 MB
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