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________________ (1) सम्म दिविनावि० का सम्पष्ट विसम्यगष्टितया माय स्पन्म मनाससम्पदानिलाजः कश्वित्वावध मोयेन प्रतिय तिनसम्पग्दर्शीनें नल देति॥ [साघपढमे सि प्रथम व सिवनुगतस्य सम्पक्क स्पतदानो एव ना बानू०३॥ ममपदामानाश्रपाम एवं मालामा गाउदा आदार एवं दान दि | कएलेमजाकाल संपवावंनवरं स्मजालिस्सा | अलिसा जीवमप्रस्समिदंजहांना मम्मी नाश्रमण || सम्म दिद्वीपलात जव सम्म दिहिताव किपक्षमाणा । सियपटाम सिय अण्डामएवंग गिं दियव जनावादमाणि पंसिद्दिण्डामा पक्षमा दनियां जीवापर माथि अपदमाश एवंजावावमा लिया। सि aucमानो पदमा | मिठादिद्दा गगनद निजदाश्रदारगा[सम्मामि दिए तपत्रेणदासम्म दिदानवग्जस्मा चिमम्मा मिट) संजातं जीवमसया पग छात्र ऊदासम्म दिद्दाश्रमं ऊपदाच दार मंडयासंग एजीव दिदियतिरिरकाजा पियमात्र ऊदा दिना संजय नाना संजया संजात जीवसिद्धेयपगत प्रदान माना अपदामा सकसाया। काढकमायी । जावाला कसाय गमतदान एकदा आदारपाकमाया। जीवसियपदाम सि * १ मा विमोचना श्रपगात उदात्रामा विभिापमानाश्र पढमा विपक्षमा गुस्से• एवं मनुष्पो पिसि वस्तु प्रथम व सिधचानुगत स्पा कषायना व स्प श्रधमत्रा तू इति ॥ ११॥ विश
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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