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लगयतीस पिपावसात जावपं विं दिय तिशिकाका गियावसाय समर्थ कथा 2 जाव विससा दिया वांगंगे यासाचा विपं चिंदियति शिरकाज्ञा नियपावसाच रिदियतिरिक्काजाणियंशिसमा दियांत दियशिससादिपवति। शमसा दिए। ए गिदियतिरिरक सिसा दिए। मन स्पावस सातकति विशदप गया सिम हिम्मत्र पावस गजवके तियम प्रस्ता विसापय । पागल तमाम स्तपाद सपएधविसमा किंसं मुक्किममारा। खादाकाशवकं तिर्थमास्तखादाज गश्वतिय माखवा दाहादानीत दागशवचं तियम स्वाद के तियमखांदा कापदं सागियाचा| जावदसंाखडा लाम के तियम स्वा
या संमिमणामसुवा दाज्ञा मणस्माद्या। गंगा समु विमंमणास्तवा हवामान सदाका गगझव काम पंडदानेर तिपावसा पातदा पावसामपवि गोग या संमृद्धिममास्तखवा दाऊ ।। गव मुद्विमाखगशव के तियमानखाहाका 220