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________________ तत किरियात मरणोत निशल्पकारातिसमारं कर्मच पयति चार] • पृधिव्यादिना व्यति सारं वासक पोरं परिताब करो नाव समारं जो नोद योः कचिद त्रिशतिद त्यादि रंज वसव या विधा इव किया काबा वाजतिनिधानायाः समानाधिकरणात प्रवेकं एवा में क लगावमयासमा शिणमा तावंशां तस्म जीव मातांत कि रियाल व शिशपाट क 5 वा.म समाहसिक हालात एवं सड या समितात कि रिया रखतसति मिडिया जाचासजी विसयास मिथं जाय (रामतिता वंशशास कर खात वाशीष्ट वहसमाल। श्रारंनमा। सारं सालवा। समारालवद्यमान डरका वयापासीयावा या पहिरा परियावयवशंसात डिभडि दिवसॉरला समारत। श्रशलव हर| सारांत 'वत्रीत इति माणासमारंलमा । श्रवहमाए। पापा जीवाणं सताएं mamaया पाया पाएँ - जुरावा एताए तप्पानल• तिरका नू एव तापायां सजीवसयास मियंपयति । ज्ञावपरिणमति । तावेगांत स्त जीवश्रांतांत कि शियानलवति जीवगांलात सयास मिथे इथं जाशनात साप रिणामई। देता मंडिया जीवणां सथा समियं जावाना परिणम विज्ञावशगलात जवाना पयति एक जाणा तंतं सा परिणामं ति । तातमजीवस्मतात कि रियालयति । देता जावल या • ततपरायेा लेश) करणे यागनिधी तू । ना एजा इति। एजना दिराहत सुनारें ना दिष्णु वात्रीत योग निरुधानिधान रहमा यात्रा र निनसकलक में विश्वंसक प तीत लालार्दिक प्राणाया पिटाव. पिटाविह 62
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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