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________________ लउ २ काल विनोद का लिय कालिक या सुवधिनाशात्र उतरं । एणं इत्यादि । जापानसति रक्षित बोधन एक स्थान स्पस बंधनः कानून हवकालिक स्पा वाढादपि ष्टष्टष्ठस्पो व्याक द स्पासितं विप करवति प्रतिकचा कल इति ॥ मामेएस त्रिज्ञानन कस्पक हिंति नरसान नाधनि संतिकशपत्रज्ञानं असतंय मला निंदा सुमतिसृणला खपास से सिंधु दत्तमीयल से विशल्पोपम वोधन भाग. न वाम विमले धम्मंसेति पुरम लिभुणिखनयन मिने नियामवद्दमा एमसि रघुव द्वितिय सीमारतिय एक तितिर पत्रा (एम तवासािंतरात्रित्रापिपा नातावा यांस विश्व१ल्या साािंतार देका लिययस्मादाबाद || गावी साजित रख लोपमगएवं यमनोबोधा भाग शिममिश्र तिरक लिययममाद्याद। पेम झिम मान्मषटू जिनांत शिवाच्या निशकवलं बादास विवाहिता दिडिया व्यवाद कान्नः स स्मृपिणी पदवाणिया कर तिर्यकाल सुपि एवं से ( सीतल नाघाचे नाबिनिग यु र वासवास सुति र पत्रका लियखयावे अपो-नाव यं वागवा पूज्य विविशपल्या "दीवानादी (वनरदेवा संश्मी सं बिग बास किस्मत।गा। जंबुद्दीवादी वा तरदेशासमपिएमम एगंवास गोरे तियिं बना विविश्वल्पोपमदवाणुम किम्मत जहालात बुद्दी व नारदेवा [मश्मी सिम दिवापि ३ पत्नियेगंच भाग यागंवासमोव अस्त किस्म तितालात जावश्नारदेव ममी म प्रमाण निशिवयच ना गाथ निगममा तिवराणां कवतिकाले अगएमा अगतिया का उजाग चलागायच निना विवि अनंनना । धरम नाघ विविधपत्योपमनु वोघो भाग । नानि जिनिग यु६ भरमना घासांतिनावविर सर्वांनाष्टवाद मल्यो म पोलु- पल्योपमनुवोघो भाग [] नीरव बितिगयु ॥ एसाननराज शिवाशेर ती व विनियु ४ ॥ • इद्रांचऊ दार्वज विययश्शत क चस्प शरवस ना हमध्ये सुइति उक्त सुविधि जनता स्वसु विधि जीत लजिनयोः अंत रनबाब दो वसूलत नव्यवाद कालश्वप
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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