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________________ संगोषु सज्ञा विग्रहगत्या पत्रेषु एवं रयादिपदेषुतंभ सांग ना किम प्रदारक परिघाणा दौर कपाल पातलसम२ दारकाइन नेकपादन नगा प्रोदा० प्रादारादार हवार पूर्व ये नाते सर्व प्रादार के तिबार प्रथम नावाजे‍ वैयिनान्स मीलातडीवालिया दारादार ज्ञनार का त्यात विरदाः तायसागरकर कघएात्र स्वाप नाम नाना कार्यान्प्रम प्रसुनी बव (तायासमव सान्मनुष्प वॉक को इनकम जिवा. 25, तिए के विग्रहमति रामंतर - प्राश्री उपजतावि होगा तविर दाणमतारा दशजाशमियारमा शिरा विद्यति म्यक्त कुश्तेद हममर तेरी गा/गदारगादिश्रणाहारगशियागालागासमा गोलांतरणारश्या किंञ्चादारगामादारगा) सास्वादन गारगावागादारगारादायादारएारणाहारण । यदवाया धरणादारगा विरेंद्र यादवदारगायणा हा रय्या दरा चादारगामादारगायबगाडा पियक्क मारा|ए गिदिए दिटाकावयविदियातिरिकाडा लिए तलेगा श्रादार मालाडदे किंवा दारएणादार महारा ममदरसाहारदार स गई एक प्राद लगताब अनिवार (गाइमन्त्री ६४ नामइ त शिक्षा मनसवागामतारखबलंगाणासम) ऐ ० सि६ प्राणी ए॥गा। सिया दारा सितममादार एवं वैसे सीएसमा जादाच्याहारगाविणाहार गाशिम सखतितोगा। सिदा रगा । दास के नालासोलार कियाहारणा हारण। माय्मा। सियच्या दारण मियादारणावादमा ध्यान मानी एएसालसा एलांत आवाकिंया दारगाणा दारंग॥ गावमिंदिरात दरोगा एवं कद प्रादाराक सायशिपलालसागरिका अलस्साए विज्ञाव गिदियवाद्यातिदलोगा। आलस्याए923 ककब मतरजाति प्रयोहारी नाविरहनपर तैना३नामा आहाआहार कानो प्रणोदारकः कस्यादितिनितउच्यते इदा संसारिणाहारकत्वविग्रहगतानव सभ्य सागर प्रा विग्रन नावः एन० इमज एकेा विग लिन र सम्प मिध्या हा हन वक्तव्यातिषां सम्यग्मिन्यो डिष्टित्वं सनातन परमा जान श्रीमत्रिका हारा हौर के प्राणा हारक नथाप्रसे जबर माह से जती सियोकोहार के कटा विना ही रोके नाही रेकत्व केबल समुदघाता २१ मनुष्य प्रा श्रीस म्युक्तविष्टि
SR No.650015
Book TitlePannavana Sutra
Original Sutra AuthorShyamacharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size297 MB
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