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________________ ततितिक्षापरी आम सम्पादृष्टिः समाधिः विनस्वास्थ्य विश्योपगतः मातन शिवीसहूनजयारलला संयम पदभिः पूण॥३॥ श्राचारस कर5|| १५|| करिएन इमरणा ॥११॥ हितधक मायानक २३|| र४|| G ॥१५॥ an रका निया डिकाया"" लाया लोटा तिलिएका सुती संदिदी समा ही यत्राधारे विनोद एं पू वृतिमतिष्य संदेशः साधिका सुविधिःसो रामदोषोपसं २६ श्रवमानादोषन २] निरोधः॥१॥ सर्गः प्रव्य यत्याग कानपक्षत्याग रा साकी गारवत्र मा दाल रसखाया वामिरादि ॥ aai सर्वकामविक्कता) समस्त वि प्रत्याख्यान यशकीविपणन २२ करिव २३॥ छितीमतीय संवेगे पणिदीसु दिदि मंद तदो सोव संहारे सइ कामविश्वया च पञ्चरका विनोस प् मारणांतिक वे जुना पन संगती परिज्ञा स्वजनादिक प्रायश्विश्वमनकरि मानक विमासंग परिकाजाणिव व -प्रत्यारयाना शिकाय 30 दक्षा काल माचरिव संवर क्रियामा शी योग धर्मानादि॥२॥ | मादे लवाल खाणे सेवरजेोगे यजद ए मारतिय से गाधिरणात पायचित कारोलिया हाथ यत्री सयोगसंग्रह बनीदेवताका पत्रपतिज्य६या।नेपानिले मायातिमध सभपतीना सोध सूर्यध्याना वेपण जातिवाचावेच्या वाष्टी वणदेवपवेदालीहरि कंप मादिक इं. ज्योतिषान सिंहमिमा एच २० विशिटेर जले का तजल संर४ श्रमितग करण आणि ॥ 8 a: प्रशांत बत्तीसंजोग संगहा । रत्ती संदेशिंदा में न चमरे बेली घरे या गंदे जाव घो से महाघो से वंदेसू तिरपश्रमितदाविलंब घोरण्महाघोरे मायके सहस्रारें ऊंघनापसतरमा रिहंतन बासस जिन कवलीश्रा सौधर्म पहिले कल्पेत्रा सविमानरूपा वा सवि माना वास वान सदा ॥ नई ४ सन के प्रामा एवा ॥३२॥ ६६ वी जीत के एसइईसाले सकुमार राई पाणचकं समरहते रतीस निशा सदा ऊंचा साहम्मे कप्पे इसी * माहिया बत्तीसं दिनी शरीर नीतिः प्रतिकर्मा नाक शिवी मानक स्वी श्रज्ञातत का करमा श्राराधना मरणोत नश्श्राराधना करीम = रा
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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