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________________ हसगना, जय देज येत जयंत पराजित विमानदेवनी केवल काललग स्वितिकड़ी सगवे क अवग यम॥ अष्ट पण सनी गारणा करतां गो सरीरमन मान का || नम॥ रा।। देव के दयं कालं चितीपत्तागोय होगांती सागरेश्माणि उच्को सतित्तीसागरोमाणि सत्र दिवपाचमई जघन्यानुवक्कष्टयल लजघन्य दिवश स्ववितेशरी शमिवारी र स्वरूप अदारिकरवे क्रिययाहारकर ॥ सर्वाध सिह ॥ जशात्री बबलीपूज्या २३ हक नह तेजस ४जिहाल गिपांच मनं। काम गोतम यांचा रक ह्यातक देश || सागरोपमस्थिति कही। एमय कहणम्को से निती संसा गरो वसाई विती में कतिपतेसरी गोदी में तेरा लिए जाद कम्मरा angasa केवलका गनगन दारिकशरीरदेश कय ॥ अहारिकस कॅप्रियमदारिकवारी २९ यमवेदिय अदा शिकर सेंद्रिय मदारिक र म शिप्रिय दारिकः एमसिमितिर्यधमदारिकपगल जयंद्रिय निमदारिक सम्म ममनुष्य मदारका मनुष्प विदियान दारिक नारी पद सर्वननगरीश मदाश्किजा कारका ज्य ॥ लव नेरालिजसरी रे संमेकर दिगो मंददिपते पदिय राचियसरीरे चडाव गज्ञदकं नियमणुस्स पंचिदिय अदारिन कनारी देवज्य ॥। यात साविचीनी पे जसै धन्यपण से गुले भ चितिही॥ कायई ॥ नेशलिय सरीरे॥] [रालि यसरी स्पांसरो के मुहालिया सरीरोगा दायां गोदमे गुल संखेद्यतिताग सहस्र|| बादरवन स्प मनिमन्रमाणात पलिक अदरक सर्व बेदिया ने शिद्रिय पंचेंयिनिर्यवान मानतिमजभिश्व तिरक फाळ तीनी अपेक्षायर!! मसंगण हिव॥ सेष समय सरतम जोगी की लगि मनुष्प अदारिका रीश्न नमान २३ योन कष्टजातिलगाका युगनी यांनी पकाई ॥ बस नकोसा तिरे ओयणस्स दस्सा एवं दागद यांसंबर लिययमाणांत हा निरवसेसी पर्वा व मरण स्तन
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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