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________________ सामाज म्पतेन म स्पई॥ पदनी॥॥ याराधीने चारंसंसारकांतार प्रतिई ॥ परियहितिऽथंड चाल संगगगगनी कलेशी ती जीवाचा पाया हिताचाधरं तसं सारखं नाव व्यतिजितवंत एमवर्तमान काल संविष्यतकालाई एहादशा गलिपिटका नही कदाचित वर्तमानकालनधी मनही तघानविष्यतिका लई कि पाश्यामता पाश्याम) मायारा किवार || नही किया तीतकाल वाइन हो वामन श्रीपारपा मिस्पर नामी नतमनही ॥ मनहीमा | ग गणिपिटक पति ॥ तीनकताग अनंता। जीव साझा यह काल नई ॥ 5 वरिं एवं पहुप्पले विद्यगतेदि डवालसंगे गरी पिन एक याचिकयात्रा सिनकयाइालव तस्प] परागत महादशांग व निलवली नियत बसदा लावी पंदा वलीचवस्तिजंबूदीप साधनष्ट जिमपंचास्ति हिमालि होइ स्पा एनल स्तिकायमी परिशमा स्वतना समयादिककालनीशिव नीपरिवसी नित्पाका देवा मी ते काटः धर्मास्ति इत्रिका लइ पानीयइ || लीयकःपहने विषैगंगा सिंकनाश्वा हनी परियन ज्ञानी प२ि॥ हास्य महनीयेमही विमानही समुद्रदय ॥ यघानामजिम कायादिका त स्मति सुविध सवति यत्तदिस्मति कर्वे तिति एसा सते अरक किवा लनीत मनही॥ | यारा कयाई पाञ्चासिएकया। चीणकता निरास विश्ांति सुविनवतियतविस्मति वा पिनिया जाणिवा वामेवति दवां गलिपिटकथा नचासीवग्रतीत वर्तमानकालकि मविष्पतिकाल इमनही असम में हो स्पयतइत्रि चार्यनइपेटीस कालभवन वानवमनही॥ इतिवारनदी माना किवास 35मनही॥ इष्टा ग कालइलावी ॥ ग्रह हितेचे सहा लामए पदाधिका वर्तमान कालई कि धानविपतिकालई यह पंचास्तिका कालइ आगल्या कदनियता सास्कृतनित्य पह वारनीइम नहीं। किवार नहीइम युक्ती प्रतीत होस् । दसर्व वषां पाई। नही॥ कालवर्तमान ॐव ॥ वामेडवाल संगे गए कयातिपचासिएकयाची कथातिए सविस्मयति सुविधसनिं सविस 985108 श्य
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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