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सातायत्र
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मागुन विषय निसाध्या साय यारखायति यादवादशनि सहीसूजा वासावाकहीय निकाधातदार दाई॥ कदी पदे को पूर्वमहान चति इतरापपा करीतिधानि नवी संग॥ बलकि हवा
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कहा कि शिका इताकि रामाला वाचा विकासद्धति से संधार एवं विणा कानदणणया करण आरमायते यगडांग सकता किंकिणी करवकरी परसमन्य स्वसमय से स्वपरस जीपदार्थ कहीयइ || बीजग॥२॥ जीवादिकपदाईजोगमघापीया घापारस मयकदीये॥ वापीय ॥ गई स्वसमय जनमतापीय ॥ मयनघावी
करतेपिविश्रवादि कते ही रूपा जि हां"
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जीवाजीदा लोगो लोगो लोग लोगो वाविद्यति द्वादश काल पाएं सेलसलिलाय समुद्द सुरमा विमान चंद्र दिकनां । ञ्चा गरते सुवर्णान्पतिः भूमिः। नदी सामान्य निधितेन सप्पादि जोन संचालन ज्योतिषारा रूपतेन संचालन तिदिगणेहिंतारा क निधान । इश्मिजातरुषकारः स्वरते बादिका जा चले जाइत्यादि ॥ यतजागांग स्वापीय। कविधन कान्पपादिकारणा क दिव विविधिन
श्रविमा गराए दी तो पियेोऽरिसद्या या सरायगोनाथ' को सिंचालो एक विभवत इथं विदजावद
जिहाल गिदशविध जीवनीलनीरूपावा गांगरकरी ईलाग परुषीय। पठापालाई काच त्रिलोक स्वाविधर्माधर्मास्तिकायनीप
वास्तवगणांगना परिता संख्याता संख्याताटा बाधना सूत्राधमनादेव यादवानं॥ दविषः।
॥ रूपणात्राघविज्ञतिकहीय॥
|सहित व जीवा पोयला चलो गतिवर्ण पवयात्रामानमात्र परिता वाया जावसं
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