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श्राणनाघव माकिमसोऽसि ॥१२- तेराजा ते साधुद्रमिवचनागणसांनलिनंदवन ते सोलली नई प्रतिहिं कुल विस्मयऊंच भूमिबोलिये। राजा श्रा
चारागाहा संता कहना हान विस्मन्निनिशिदा सा सुसंतास विविध सा
ईसाधन विस्मयसहित राजानमाहर घोमा हाधी मोम पर अंतेवर मनुष्य संबंधी न्यानो लोग अनादरई श्राज्ञा एश्वर्यवर्त १४.
विनिशमीम समरे श्रावस्थामा संजामिमाणु सतोगाच्या गाईसरियंचामा १४ देहसीलदतीन प्रकर्षि सर्व कामसहित किमत्रानादेगवन शतचे बोल शाहार २५ राजनार्धन रेशम से पर्ययेमि सर्वकामसमणि एकदा हा हवी माऊलीत मुसंधान मंजा गाद
त्यहिन जां
नानां १६ हराउन विचित्रबहीन निश्चलचित्र कमज
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रहराजान जिमन्त्रनाघ श्रमस
याच पत्राहाणादाददी सगा [
'नईक हितासांन लिङिमन्त्रनाउ जिममदीदा लीधी
साहादावी अहम
चांदरा हिवार६] सुगिदिन महा राया अचारिक
1 राजन को मंत्रीमनगरी जूंना नगरीनी जयाहारिनिदध
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राजन मलई गावि
त्रियं |२|| कासबीना मनयरी | पुराण श्वशत
लक्ष्मीनु संचय जहन यहवनकुणामाहरु राजन मुनयेो वनव्यघणीवेदना ग्रांषिनी अपनी यासीपियांमशालय संचार मामेव एमहाराय। श्रखला मंत्र्यविवरणा। श्रादाय विद्यालाया हा सह घणुदाघऊनु १० हेराउन जिमको यस हितरीन प्रतिहिती कटारी माघाकरणं एहवीमफनईश्रांबिनीवेदनाऊपनी॥श्य हेराज परमं तिरकं। सरार दियरंतारा। श्रावीतरी आघा गवामय विश्वया। श्वातियं Con
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