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________________ तारागदया वलीमात्र उजवकालत तामिनादि श्रनयालगामीनही) श्रनवारी नई वायनालाई स्नानसंघेलिनवाई, नापरीसहस उत्तराद सायांना पशिक्षणादिवत्रीमदाची सिगारांनाविपत्र गायानाथरिसिंचिवइयां। या साखंडांस मसाइय गद महाड निसाधु से यम पालण हार के सनी पर जिमदम्सीसंग्रा साधो समसपी निवासम • मिचनिहाईतिममाधुन गतिलाई सहमहिमसादिक १० हायसमक्ष समारमहा मुखी। नागा संगामसी सदा शराय लिदानसंतासनवारि मनिकना। तेमां सरक्क प्रांतांयरी महसह ५१ परीसहसा घुम्न चीन वह जिते वस्त्रकारी व खरक्षितघाई सम जीवन नदी मानिसमावदनदार सुंडात मंस से मियं)। शाप रिझान हिंद ञ्चिदिं। करका मिनि‍ नदीनघाई वाकसहितधाॐ इमसान चीतव १२ माधुजिनकल्यीन मार्गिव रहित शिविर *या पायाचनादाश साचाल शि गामानुगामि चालतो कीरपरिग्रहरहित । श्रतिऊपड़ चला वासाचलारकं । इलिरहन विंति कल्पसहित ज्ञानवंत एव निधर्मी एमन माधुर गया। एयं धमांदियं वा नागनाए शिवगामा गामंशयंतणारं किं श्रर पुण्याव पति महमद७४ साधुचरति समाधिटालीन जेसे सारन इंविषविरमित्र ज्ञानदर्शननुं माटचाल । संयमन विषई रसातितिरके परी सद||२४|| श्ररपिइन किया। विश्राश्रायर किए। धम्मारामिनिरारांना अवसांत सुदरे॥ • जेलोक मोहिडाऊ १५ स्त्रीता संग संसार धारदार मनुष्यलोकमा हिडेजी एवं स्वरूप स्त्रोत पीतेन चारित्र पालतांसो दिल जीवश्रमायसूयाल २६ मनुष्य समारमा 4) संगाए समस्त्रीणं। जाउलो गं भिन्चिन। जम्मा गया परिमाया। सुकरें नम्म साम २६/ एवमादाय महा य
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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