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________________ ।।६।। श्री धर्मस्वामिनंप्रतिकह दे श्रायुभान आयुषा संयुक्बई संगत श्रीमहावीरकहिनं मम सान लुखलु निशू मिवर सगवंति दश प्रका रिब्रह्मचर्य नासमाधिस्थान करूप्या कहयां सायद धर्य समाधिस्वान कसोलली । घञ्चारित्रघर समाधिना गुप्तिकरीयुक्त गुप्तइंडियन मदाश्रमन्न विष ब्रह्मचर्य गुप्त राणायामच्या सांगणं सगवयायवभरका थे। इहखलु ाघार दिनगधांत हिं] दसबंशाचर समाहिप्राणायामन्त्रा निरासाचा निसम्म जमवाल] संवरबलासमा हिन काला गुस्त्रगुलिं दिया गुज्ञवं नया रीस याच पणिविहर। स्वलुभिश्वमे विवर लगवंत कहिया । दस बाध्र्यमासमाधिनां खानक प्रकृया तिसाधु सोसलीही या मां हित्र्वधारी चारित्रनई मात्र विदरिया क्याररखलुताधारहिंनगचात हिंद सर्वनाचरममा हिडाणायमत्रा । ऊ निरक्रमा च्चा निस विषयसं वरनविषयपुंसमाधिनविष। गुप्तिकरी संयुक्त ब्रह्मचर्य। सया प्रमाणविहार करणं खलु निव संबर मम मनाला समाहिकाला गुन गुत्रिं दिए ब फुले इंष्टिवेरसगवंति इस बसरमा वानककहिया साधारहिंसगवांत हिं] दस बंनाच र समाहिहाणायला त्रा ऊ निरकुच्चानिसमासंऊमबाला संदरब घसमाधिनविषयगुप्तिकरी संयुक्तचर्यगुप्तितः प्रमत्रयई विहारकर तेजिम माधुते जेवस्त्रादिरहित सिज्यानुस रेल | समादिबालागुनि गुनिं दिगगुनलया। सयाम्प मात्र विदारद्या। तंज हा विनाई सगा सगाई पहार तेनिगंधकही अश्ते साधानसहित सयन श्रासनासवई नियंघ साधुकही शिष्य श्राचार्यक सिविद्या। इसनियांछ। [नावी डग संत्रा इंगा साइंस विना हद। इस निग्गघातक हमितित्वव गुत्र बतयारी सयाम्पमात्रा विहरिद्या। शमखतु कुषी स्वरसाललीन घचारित्र विषघ संवरनविष
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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