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________________ ३ भाषा तहमा ४० देशजन सूर्यकमलोगन विषई मूर्खा अंतारागदेषरूपी अग्रिकरी जगविश्वात ऊंन वनणवं रागादासंच संगया। वामदेवयंमूढा । कामलेोगसुखचिया उमाशामा रामदासंग्रिला अगं ॥ ४३॥ ॥ हराजभोगतो गवीन संसारनामुखविमी नई विदारी ऊंताधीर मुलरदर्षयामतां ॐ ता चाल | स्वीयामी परिमियं एकोमलो गाजमा हरदा विश्राव्या षीया श्रापणी वाचालाई निम चालिसि ४ लागतञ्चाच मित्रायालंकुसूर्य विहारिणा। ग्रामायमाणां गति दिया कामकमा ४४ रामबहाफ दंति मम हंता बाध्यांऊंना चलनी परिवर्तनकामतोगविरक्त जिम परोहितनी परिहोश मिमं ५ राजन श्रामिषसहित मंधी बाधादेषी नई नई चामा गया। वयं च सत्रा का मसालविस्मामादाम ॥ ४५॥ सामिसंकुल लंदिस दशमा निरा मिसंध्या ग्रामिषरहित पंपाचेका देषी नसलीला श्रामिषवाहीन लार दिन विदिरिमिन हे राजनगृडूयं स्वीयास रिषा पुरुष नश्काम लोगसंसारवर्धन ओलीन गुरु मिस शिक्षा विहरिस्मा मा निरा मिसा॥४४ राजनगजेंद्रनार्यारं natanda काम संसारदहरण रागासुद बंधनवेदन श्रावसिनदिषा देणुकार हे राजनमे मरुन श्रीनि समीसिना परिसका • देहचा लिखाई • तिम वित्रा श्रणवस हिंगणा ययं यचंमहाराय । उच्चारि नपा सिचाकमाचार | नागबंध यदि मानलिउ तेबिन्दि राजाराणीय काम लोग विस्तीर्मराज्य खोमीन विषयकलार दित स्नेह र हित परिग्रह र हितका घर तेराजाराणी साच शिम सुधा चत्रादिजलेर । का माला खाया। निद्दिसयां निरा मिस्ता। भिन्न हो निपरियह।। ४ । समं धर्मजागी न कामगुणांमीनश्वरप्रधानतयधोर श्राक्रोशपराक्रम सहित श्रादरी नदीकाली प्रकारितेवरंजीवप्रति बोधयाम्पाते मध धम्मं दिया मित्रा) चिच्चा कामगुणचारातचंय गिशहरका या घोशंघारं परक्कम एवंतिक मासा साध
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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