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________________ विराट 22 टा करणं। पर नहस वितर्क । व्यय निर्मान कर। विधानेन विस्मयकर उज्जीव कंदकराव इंगला वानां नदियां वीडीव मंत्रयोगतवा रक्त कर ६ • व्यक्रषभादिकयो ग छमता जागे का तहसील सहा वह सविगदादि। किव्हा विताय परो कंद लावणं ई करीन तकर्ममंचचादर कादिकर का निधांना दिककर्मकरजीयानियोगादेशकारी देवना नाबनाकर ६६ श्रुतज्ञाननां केवली तरणाधर्माचार्यतरणा। दिक कर्मक, रमा नासुखर सहे ॥ सूई कम्मेपनंडई ति मायरस हा नावां ॥ ६६॥ नाम समकिवली गांध (साधतरणइत्यादिकना अद्दीवाद बोल माया करीः प्रवज्ञाकरख कनिमी यादव ताणी लावृनाकरणं ॥ ६ जेजी व नई निरंतर कोमन तर तघारोग्यादिक २ मायरिसंघमा । माझ्यवन्ना कि टालनमा वाया आधा कर्मादिक आहारक पधादिकसे वना हार तदयनिमित्रमिहाई पडिसनी । गहिंकार स्करीविषयाणेकरीव वे स्वानरमा दिपईसी अमर करईएनला नाव जीवगड व कारी आई सावना कर५॥ ६६ ॥ ६णु बंदोरा संसारा || घ) इति उन्नीसवन्तरयणसम्भृशं वार्घमं॥॥॥ ६ ॥ इतिवत्री समरस वजीजीदा | सरियलक्षण|| ६मा स दाना मरणकर सांडविद्यामेव शंका ना चारचा लई च्या चाररदि. तिने जीवजन्ममरण वारे व महावितरकांचा अलग कुलपाचासायिणाया र संडासना उगम श संसार कर॥६॥ त्रीछतराध्ययनगर का केवल ज्ञांनी श्री दई मोन स्वामी मुक्ति प्राप्तन किसिमबनराध्ययनमन्यच तेनष्टि ॥ बंधति। ६० ।। [३५] पाउकार बाघा नागपरिनिग बनी संवनराशा | सर्वसिद्दीयसंमशन इतिवशरशय्यामरधा सम्माना। इतिवत्तराध्ययनसूबाई ११५ ६॥ वत्ररक्षयण रकीधा सम्माना॥॥ (+) ६ला का रसरणीय
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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