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________________ साचिऊंजीव नश्कर्म व एदिसः श्रागत प्रमाणुमयसंग्रहणयोग किस्यां कर्म सर्वात्मा वदसिरीयल सागरोयम क सहजीवाणकांचा संगाद बद्दिसागय। मासु चिप्पासमा म हंसाच गावगावददीस रिना मागतीस को जसको कोहि सागशेयम अघन्यांत या विज्ञानावरणीनी दर्शनावरणीनीवदनीय नीयनिकर्म त्र्यंत रायकर्म (डिको डिम) बाक्का सियाविय रहा। तानु अहनिया।। रयादशी झाणादापि । वयद्यातादव्या ऋष्ट जघन्य स्वतिजांची ॥ श्य मोहनी कर्मनी ऋष्टीस्थिति सन्तरिकोमा कोहि सागरोपम अंतरा एक मम्मि विश माविया दिया । श्या उदही समसत्रशिका डिको डिजारमा हमिवाकासा 1/ आयुक मतली || ऋष्टमिति । ॥ जघन्यतम २१] ॥ तेवीस माग रोयम ॥] \l तामुद मिया॥ नित्रीससागारा दमा कामरण दिया दिया। विश्वमा कम्मरसता स रावी २२ नामकर्मगोत्रकर्मी विन तिथीस कोमाको हिसागरायम जघन्यत्र श्रादयंत्रांमक अहमिया॥ [शा दहीसरे नामागची सई को शिकार डिवानामात्रा गाव का सा श्रद्धमुत्रा हर्मियों कर्मानुसार सिविशेष सिविशेषसित अनंत मला गिई। मघले अनु लागे परमाणूंप्रमांग सर्व जीवनुयधिकः ॥२४ तेसकारण कर्म ॥२३॥ शतसारगाथा लागज सर्व तिचे सासू विरासाग) महंजी वसई चियं॥ २धतञ्चागामिकम्मा ल. मनु विज्ञायनांली नई। ईहा कर्मतं संवरयकराते नई दिशा हे जीप विनंमिबोलि ॥ २५ इति कम्मपथीयांसम्म ॥ नाग दिया गया। सिं संवाराचवारच मरण यादा शिवमिति की ममत्र। धूपतडून सजव
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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