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६॥ नदिकाल सर्वस्वं मूल संसार का दान देख मुक्तिमार्गयको हित हितार्थ | मुकनई कवितांश्रोताहर अश्या समत्र शातकाल सममूल्यमा सहसो रक स्मारा । तेा राम्राम डिन चिन्ता। रामाद्य घतरण संक्षेपक रितुं इत्यादिकबोलअभ
चित्रमा सलिये ॥२॥ सत्याच्यज्ञानका सिर्ज
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या साईगांत दिये दिया । शन मे सचगासायमाणामाद विद्या रागस्तदोस स्मय संख मोहमार्गमा गुरुगीताती मेवा की। ग्रनभूलोक अमाग्रीहरिबांडियन एक तापसमायागुरुदिद्वासवाद्य बाल महरा भाग भासणा साधु चाहरलेवु
वा ॥३॥
वाब। मन्या साईला ) नियुविक योग्य नि पायांबन समाधा
सुतञ्च संचिता या धयान श्रादार माल मियाम रेलीका मनी तो वो पांच ना विषय रामानी यद वाजे साधनपची वानि ॥ ॐ मनाई अधिक गुणिकरी सन्मान एक पापक
6. सगिां सदाय भित्र निबुद्धि। निकेय मित्र
रणहार एकांत सौख्यमार्ययाम तासार समाचारको यनमेव वि। समाधिचित्ररूं
विश्वगजोगा समाहिकामे समान स्त्रवालाल द्याणिवां सहायं। गुग्गा हियंवा गुणउस मेदायाच्छादि
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कामनविघराच विदारकर 4 जिम यो डानु कपनी बगली तिमबगली कपनुंई म ए यावाइं विवद्ययोता विहारा कामख शहा यांडला वा बलागा। चंडेबलागालवं जहाया य तीकरादिकमकहई ६ रागांइषक बीज आणि अन कर्ममा कपनं बोल। दय मामाहाय्य खता। माचातष्टाय यगांवयं तारा शायद। सावियक ममदीया कम्मचामाद सदयंति क
कारिला मोहन स्वानक
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