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________________ 6600000 चारित्र विधि बोली मधला जीवश्चारित्र विधित्र्याचरीन) संसारसागरतरीया ॥१ साधुषीश्वरयक स्वानविरनिक रिवी नाक स्थान के वि मिजीव सदा चरित्राव हावा निष्टासंसारसागरी ॥ श्रमजमनिव । मयमन विप्रवद्धिं माधुनिरंतर रागाच्यविज्ञिपापकर्मना प्रवर्तक निविच संरमय्यवत्र रागाद्दासादापादापादक मंत्रो। अनिरकुमं नई कागजपत्र असा ते साधुसंसारमादिः मुक्तियाम मंड जसाधमनी दंड श्वचनम साता भार वर मायामाल्यर निदान सल्पर मिध्यादनिशल्यपत्रि बोलबम । ते साधु जेसा देवसंबंधी उपसग्री मनुष्य संसारमेमलि, नरह दंडगार वाराचा मला गं च तियेति। निरमंडल दिवे यववसायातदातार तिथेच संबंधीया। उपसर्यसह । साधु संसारमा दिनर जे साधु च्यारिका श्रीकार मुक्तक चार देश का राज का ४एच्या लाल४च्या रिषाय नारिय चमा गुस्सा उतिर मदई विद्या सागदाक सायस नाणी कामाच येत हा!! नमनमादिना हुई। श्रर्त्तिध्यानध्यानन) असाध्यो चमदाता प्रतिया ० परिग्रह इंडियन विषय शब्द परमत्र गंध स्परसमनिय मृषावादादांनरमेधून नावारणास३ श्रादान लाइनियेसमतिष्ठ पारिठापन का समति तसंसारमा दिनर दि अतिरक्त चाईनि मन छ भगसुईदिनमा समई मुकेरिया सुया ऊलिरहयई। समग्रम asima ८° कार्यका कि हवकीया०० जमाधुले उपादन विष। ग्रनइ कारणाई करी आहारन इंविषई। एबोलन इं विषईज माधु नित्पयन्न करई तिममार जे साधविद्याविग्रहपति माना या अधिकरण पक्की याय 4 सासुका खावाकयादा र कारण । उ तिर जायचं मंडल (पिंडाग्रह पडिमा 16610 विद्वापनक क्रिया सातनेदा नईमानालय स्थानक । एवोलन विषई जे साधुनित्पयन्न करहूं। ते संसारमा जेसाधुच्या मदनशं विष । नदरी प्रकार ब्रह्मचर्यनश्चम) 58 श्रियायायलयाण सुमनसा निरक अयईसी मग मंडाला ||सुबे सगुनीसा लिकु धममे मिदसािदा ज यावा अन किय समति नियां च क्रियामा बोलाई। विषयन करई ते माधु संसारमा दिनर दि या कानश्या
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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