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________________ A अनंतदीर्घ चडर्गति संमारकंतार शीघ्रतालुपांम comm चत्र छाडाद्या घाउ चिणायंवद यदीद महं चाउरंत संसार के तारं खिय्यामववीतीय धर्मकघाइंजीय धर्मकघाई निराकर चलीधर्मकधाई निशामनृपतावना कर। जीव प्रवचन प्रज्ञावनावि मग महाराणं निरं धम्मक हादियागयताविपचय लावावागाम 31. कर्म कल्याणकारी बांधई २३ हलगर्वसिद्धांत श्राराधनाईजीव सिनं कर। ॥२२ रुगवन् सिद्धांतती श्राराधनाश्वज्ञानानं य सम्माननीय कम्म निबंध शासयन्ताराणा (याण्यांत जीवद्यासु सदायाचना कर। सूर्यलेशनयां मई २४ नगवन एकाग्र मन संसारस 48 मम्ननिवस जीवयं जीवार काग्रमन निवेसिव घिरकर कर स्वाशनयमं किलिम | २४|| मामासं निश्वससायामशालांत) रागग्ग मग संविसयाचि चित्राएं कर ॥२५ नगन अधर्मय मित्र मित्रकार। ॐ वयमिनिःपाकर 2 ॥ समगवनीवृताविकडो जीवित सनिक | २|डामलानीव किंमष्टशतवतातयताव म पकर कर्मतं निर्मलंकरणं ।। २] हेलगावनजीव चव्यदानिश्ण जीवव्यवय दोन कर्मक्रियाचि पब मी सवा या गंडा | २|| वाया शाम संतवायागगां करिये बाशिय किरियाग सविज्ञा तयासि श‍ करे, संसारनुल गुधाईन सर्वरकताई ॥२८ देगवननीमन समाधिमिचे कर। जीवमन समाधिनं विस्मदप बुझाइ शिरा डायज्ञ सहपुरकाश येतं कार ॥ २॥ सहसा या सांसांत या मुह माया अणुस्सु यत्रल 2 RER
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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