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केसाथदीकालेईनइँ महड्तप्रमादई मा चान कर सई सम्पर पराई साचानपालाई । ते नियम निश्चयरहितञ्चात्मान दियरा ग्राम हे मूल बंधन बेद ३
जात्रा महदयाशं सम्मांना कासयईये माथा। श्रगियद घ्याय शम संग घान मूल बिंद सा यहईया समति नई विघ लाषा प्रदान निश्कपणान चार समति नई विघई का ई मा वधानपनीतश्रीरगुरु एयात यामिननधी निधी गिरुण्यातमुक्त, प्रायजस्मयन चिकाई। इरिया ईसा माझा नाहसाए । आयशा निरिक व गवरगाए। नवीर जाये प्राइम विधाकाललोच मुंडन विषाक्त ।। चंचलततपनियम लष्ट कालाय
ही नई। संसारपा रंगांमी नऊई ४१ ।
या चिरंपिास मंडईलवित्रा अधिगतवनियामदिनाला चिरपि श्रष्णाकिले सम्झा। नया हाइयरा
हिरामन जिम पोलीभिसारत्तिमतेदीका सारथवाजिमती मुंद्रा सारा जिममा सुर गंगा विं बांधी सारातिमतदीका असाराजिम कांच मणि
सारा प्रांतिकूडक हा वादावरुलगा सामो अमूलाश्म किया
हेराजन राई से सार सावन
गतिघांम
गील लिंगधररओ हरणादिकञ्चाजीविकानाच चीनवनि में जिनप एक सील लिंगंधार झा इसिजी दिय ब्रहा असं संजय लामाया विश घाय मागरम चिरंपि हे राजन जिम कालकूट विषय धनं दगई। मिशस्त्रया हातिमधर्मविषयादिकप्रमाद से युक्त होगई। जिमचेतानमंत्रादिकेच संधिन ॥४३॥ विमंडपातकाल । हागाईसह अगदी थे। एसेवधम्म) विसर्वदवाना हा दयाल नावि मजा [गि ४४ जे साधलाखप्रयुज ।। निमकरंदल पाएगाखमाश्रवकर माया कर । नगन रहित विद्याई कारपेट नरई। चला ॥४४॥ डलरकांस विशांप मारणानिमित्रो का महत्व संपगारठा काहडे विद्या सवदार डीवी नग
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इशारा ४२ मांहिशोना नादिय ४२
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