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________________ अयनीयरुपला तेकी । बिप्र रेसीयो बँ हा विश्रुतेने मनुह कह‍ वीरकहीय / रवर व० - व्यारसीयानुजाव तथा १८ ट्रमप्रदेसी यो धनुर्वी कही श्रढपय परुचण्या (तिपएसे श्रीपुच्ची चप्पए सिए | आणु पुच्ची जावदस वए सिए) प्रा जातप्रदेसीग्रानु 1 प०यकली प्रमाण पुलाव ६० चे प्रदेसी 3 | लुपुचीसंखेडा पएसीएची जातय एसी ग्राफ। परमा पो जूले काला णु पुर्बी प् एकल अवक्तव्य | निप्रदेसी थाबंध घातेन घामा जावत चार प्रमुषन्त्रप्रतप्रदेस या नाव कही य घात नु वी कही २१ मालु एसिए । अवतर ॥ निपएसिया | आधी | जावा हात चएसीए यात्रा पुची मा ते घाना वीक ही वेत्र देसी या बंध धावक्तव से० नं०ते अर्थमा याहि बंधपट्नीचरुचला तेत्र पोग्रला प्राणा पुच्ची | रूप एसिया घत्तव्या ॥ सेापकुवामा एमा विट्यरूपया एली ने अपनी च रुपेला किंसु प्रयोजन महामनयनाधीने | एली | नेगम नयन्नेव महार नयनर एलेचवाना । एवरुचया ॥ किंपय स्थ एथा एलले जमुववहारा ॥ नेगमवव्यहार निमते परूपला ने विष ल जानु किमर्थव से ज्ञारुयव व हम दे पण्यन पूऊन घ 1 मत कार्थचहनीवरुपाक नानुकीर्तनुकर | किती थकी समुचित बाळे जे श्रप एप्रूव ण्याए । मंगसमु कित्ता "कौर इसे किंत्तं लोग मचव ०ख प्रामु / अ०वेनानुव 1 श्र。 ेश्रवक्तच एकर) अनुवा लथा ॥ॐ ॥ श्रखिपुत्रायुधी । श्रमिन्प्रणायुधी प्रति || अविश्राणपुत्री उ जागाथा ची や संध्यानप्रहे सीया अनुवा
SR No.650011
Book TitleAnuyoga Dwar Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorShivchandra Porwal
PublisherRatlam
Publication Year1853
Total Pages200
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size101 MB
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