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________________ १० समी जे बोलिएखस्तु एकरी तेस्ते समय नुरूप मनेार्थनेगु एकपतेन यमानेते समय पणि प्रस्तुवन्न वर्तमा नकालग्रा हिरुनुमुत्रनीपरिवि से बनाया गुरु गुरुः इत्याहिकनि ललिंगक्वन मानवरमान थापे नान थी मुब वरोध कारली श्रुत ज्ञानजए कमाने प्रथ वा ने गम १ संग्रह यह ३ नयद्रम र्थिकमनेकनु सुत्राहि क४ नयने पर्यायार्थिक वधुन्वस्तुनुद्रादिक मुसमन वस्तुका दिकवि ब -२० १०० सबुते वस्तुनेसनव शकि हास मनिरुट मवि मत्तनामने नेटवस्तु नो-ने दसम निज्ञ हे माने तथा विजे श्रनुयो विहिमुलेय हो । इवि सेसिथत्तर // पचपन्न तेस मनिकायथा स्वयते परमेश्वरने सके स्वरतेस क्रममाने यथासंदेह पडे तथा अनेक नाम वस्तु ना घटऊन माने नावार्थ एकमा टिमनिरुद्रमनि योनमाने जे न लोद्रव्य तो ते घानुका रजक रचा समर धनही नाच प्रधान माने वे० जे क्रियावि सिटस कर वो लि एते हुए क्रिया करस्तु एवंभुत कह वा एञ्चेष्टक्रियादिकप्रकारत्ते क्रिया सहत वस्तुना मान वा थी एवं नृत्त नय अथवा एवं नृततत्ते एवं नूत उसहो२॥ संकम्मल होइ ॥ श्रवचएसमनिरुटे अतिप्रगटकरिएअर्थ हो ना०समका गृहित दरवाजोग समय कदरसनादिकमगि० महितानुपा दिय ते वे प्रकाने एकहिया जाम १ वी जो पीए विवान वायोग नेहेते मिथ्यात्वादि की उप तेलीय स्वर्गरुध्याहिक खोल न विष ज०जन कर वोएतले यही तार्थन विप्र वो हित ग्रार्थने विधेनिवरत वोड पे से यथार्थ नरविष २०६स्तरहि वोमेव प्रति० एमजी हारना ज्ञान का एनोरूपहा रो सर्वव्यव लिहि वजन नए एवंभु विसे से ३ नायमिजिथि मे सर्वोक्त वोलने विब क्रियाज करवी कि या नय विश्वक्तवतानी 'सानली ने एन ले सामान विसेध १०० || जश्थद्यमेव55)| ॥ जोन क्सी सो ए. 303 पदेस सो० तेनय० ज्ञान न य क हि एवाथना नाम ते सिव्या मंत्र इस सिसवन यनाथ यत्रेयच्छमि ।
SR No.650011
Book TitleAnuyoga Dwar Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorShivchandra Porwal
PublisherRatlam
Publication Year1853
Total Pages200
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size101 MB
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