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उतक्रष्टुं | जुक्त ध्यानु |केत हो । उत्तरकबे फक्त संख्यातामाथी जंघन्न आव प्रावलि काना समे कानुयो उ को सयजना संरकेायें ॥ कितिय से जहन्न एजुना से खेलें । आवलिया गुलिया । घरा सिगुणी जघन्तक के था एते महेथी सु० एकरुप काटिए उत्क्रष्ट युक्त संध्या तिवार
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अथवा जघन । संख्याता संख्यामुळे
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अन्नमुन्नभासी रुवीलो ॥ उक्को सयजत्ता सखिये हवा जहन्नयं । असे खेद्या माहिथी रु० एकरुप उत्तष्टो सुंब्या होइ सिधपुळे | जधन्ना संब्यात असंष्पड | केत लुहो संखेापस्तत्रर्ण। कोसयजनास ( खेळायो हलयं । श्रसंखे द्या असंखे गाए उत्तरकहबे | जघनष्या तासाथ प्रावलि का ना समय-सी गुणी ए जघन्न के कम संख्या ती सीते हजरास स्पु गुणी एएममा हो माहिन्यात करे कते जरा सी किति हो जहन एलं । जतासंखि झणं ॥ श्रावलिया गुलिया अन्न मन्न श्रासो पनि थाप्रति जलसंध्यात संप्पाड | अथवा तक्रष्टुकक्त असंष्पा ता नेवि | एक रूप-क्षेपित तिवा पुली जलयन्त्र से सेा ॥ संखिद्यनव हवा ॥ उको साखि अध्यातम संध्या तिवारी मध्यम से प्पातान्त्र से पाता नास्था | जावत तक्रष्टका संय अ॥ रुर्वपखितं हल यंत्र संखे या साय होते परं
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त अजहन्नम को
संख्यात्रु
नन्न पाम
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उत्तक संप्परत
सार) | हाला रजावर केस यं संखिद्यशंखियंननयाव २ ॥ उक्को सयंम से खे दर
अव्यात्तरासी गुलीए नाव एम पास की घे तेजे रासी