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________________ उतक्रष्टुं | जुक्त ध्यानु |केत हो । उत्तरकबे फक्त संख्यातामाथी जंघन्न आव प्रावलि काना समे कानुयो उ को सयजना संरकेायें ॥ कितिय से जहन्न एजुना से खेलें । आवलिया गुलिया । घरा सिगुणी जघन्तक के था एते महेथी सु० एकरुप काटिए उत्क्रष्ट युक्त संध्या तिवार २०८ अथवा जघन । संख्याता संख्यामुळे हुई ते क अन्नमुन्नभासी रुवीलो ॥ उक्को सयजत्ता सखिये हवा जहन्नयं । असे खेद्या माहिथी रु० एकरुप उत्तष्टो सुंब्या होइ सिधपुळे | जधन्ना संब्यात असंष्पड | केत लुहो संखेापस्तत्रर्ण। कोसयजनास ( खेळायो हलयं । श्रसंखे द्या असंखे गाए उत्तरकहबे | जघनष्या तासाथ प्रावलि का ना समय-सी गुणी ए जघन्न के कम संख्या ती सीते हजरास स्पु गुणी एएममा हो माहिन्यात करे कते जरा सी किति हो जहन एलं । जतासंखि झणं ॥ श्रावलिया गुलिया अन्न मन्न श्रासो पनि थाप्रति जलसंध्यात संप्पाड | अथवा तक्रष्टुकक्त असंष्पा ता नेवि | एक रूप-क्षेपित तिवा पुली जलयन्त्र से सेा ॥ संखिद्यनव हवा ॥ उको साखि अध्यातम संध्या तिवारी मध्यम से प्पातान्त्र से पाता नास्था | जावत तक्रष्टका संय अ॥ रुर्वपखितं हल यंत्र संखे या साय होते परं बे न क त अजहन्नम को संख्यात्रु नन्न पाम सिप उत्तक संप्परत सार) | हाला रजावर केस यं संखिद्यशंखियंननयाव २ ॥ उक्को सयंम से खे दर अव्यात्तरासी गुलीए नाव एम पास की घे तेजे रासी
SR No.650011
Book TitleAnuyoga Dwar Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorShivchandra Porwal
PublisherRatlam
Publication Year1853
Total Pages200
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size101 MB
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