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________________ तं ते कलकलाप चीजला सहित मेह स्तनितमेघ गर्जित इ साथ ग्रहल से किंतं प्रालागय कालग्रहास निम्म लतं ||कसि एण् याए गिरिसविक या महाघ् वा० तथाविधि दृष्टि करवायी संध्याविताला किन क्षेत्र नेवि ने रोहिणीने हा दिकन क्षेत्रने अथवा ने रिक्षितमिव्रती प्रस्त वा पनोमे त्या तने वाकल विबेधव नोते माहिह हकहि शको प्रस वारुवाल || माही देवालयस्वाप नृच्छया एणइचिनकरी अनागत कालग्रह एका टिकाति है तत्राहि कते साध च लवो ल्पा गद्य कालग्रहलय निर्णही तेरेखा अतितका अथको अतितका उप ऊसे नसे० ते ए जहा सुधीन विस्स तं लिपल ती देबी पियवा झाल्सा लिहा घरताये ॥ स्त उत्पात उलका पातादिकप्रसस्त जीम सुविटी पा० देवीने ते तो कारले अनुमानकीज ॥ पासिता ते ऐसा हि विपरीतवसा विपरीत साधक नि०लिप्रकारे ग्रहण वस्तुनु धान सिंचेव विद्या से ऐति विगह लेनवश्लेती | कालग्रह ट्वी प्रथवी सुका । ॐ सवर मी महाँ सिलाई वुलाई निष्पन्न | सत्सेवान मूली [ तैलेचिक सानुमान की प्रत्य थश्दीस लिपासिता नेलंसा दिवाश्क बुट्टी) मा सिसे तंनी ग्रहण सा०साफ तो दज्यो निता लाभतोएह पा०देषी नोक्षिप की जे तो लग्रह] साऊप्रयरंगमधे निश्कलनमा पासिता | त श्रासे किं तंत्र नाम का ल तलाव चा० देबी ने ह 1 काली | ऊंड सरन राहत लागा प्रतिकाल ग्रह से कील प्रत्युयन्तव ते काल ग्रह तेले चिले मान काल | से किंत पहुषन्न का अनुमान की महिल जे वर्तनी साहिरन हा
SR No.650011
Book TitleAnuyoga Dwar Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorShivchandra Porwal
PublisherRatlam
Publication Year1853
Total Pages200
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size101 MB
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