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________________ उपासग ४० |नियंघप्रवचनधकी]] ||चलाचवा || खोसपमाडिया | विप्रजा सपमा डबा कोइनधी तिवारपबी है। निर्गुधा तो पावयणानु चालित्रय वा खोलिएका विष्परिगमित्त्रय्वा। तते || सकऽ | देवतानाराजानो || ए || चणसतो | ३ |इहां दवड) आव्यो| तेमाटई प्राचर्य । हेदे सकस्मादेवं दसदेवरले यमग्रसद्दहमा ३ | इदंदछमा गए| तंय होणं देवाएं वाएं पीया | पछि ला पांमी || सनमुषईघई | | तेम दीडी / देदेवाएं || जीया | | एहि सनमुखधाई कौत पिया | इही ३ लापत्ता | अनि समरगा गया। तं दिठाणं देवाप्पिया। इदी जावच्य || तेमाट | ] मा बुं बुं| हेदेवाएं प्रिया | खमो म्हेमा हरो पापराधनशं। उम्हे षमवा | हेदेवा |तिसमरगा गया| तेरवा मेमेगं देवाएं पिया। रवमममये वादं नेणंदेवाणुं प्पि प्रिया प्राजपुत पहवो अपराध दी। इमकहीनई | पगई लागो || दाघ जो की नई || एच्चपरा६ वारें वार योग्यत्र । 'कर्क म्हारो । या गाईस छोटा करण्यापति कहु| पाय पडिए पंजलि डिप्यमहं सुखो ४०
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
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