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________________ कोई देवाणु प्पियानी I J समीपई] / घJउग्रतोगादिक दिक्षालाएतेध-पपरं नहीनिवाई कहा जहाएंदेवाणुपियाएंअंतिए बहवेज्यातीगाजावपचश्यानोवलु अंतिम समर्थनही देवाणुपियासमीपईदिदाखवा ऊदमां देवाणुपियानी] समीपई पाँच अदंतहासंचाएमिदेिवाणुणियामुंडाहणेदेवाणुपियाएंवेत्तिए पंञ्चाएं वत सातमिरव्यावत । एवंबारधकारटधम्मी अंगकारकरवासमई जिमसातातिमा क्याई सनसिरकावश्यं ज्वालसविहं गिदधम्मपरिवद्यामिचिदासुदीत तिवारपनाति अग्रिमिनासार्या श्रमणसगर्वतमाहावीरदेवनी समाप पांच अवतादिकापुकारें तेणंसाशिमिता समस्मत्तगव महावीरस्मतिए पंचाऐवश्यंजा धर्मअंगीकारकरी नई श्रमण सगवंत मादावारन । वादीन नमस्कारकरीनई तिमजधर्मियनामारघ वपडिवाति समस्मत्तगर्वमदावारवंदतिनमंसतिशतामेवधम्मियंजा करो।
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
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