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________________ पचमा । करई लीमई पर परिहव‍ || जोताहरा | कोएकपुरुष } \वायरशंसुकाणां । श्रग्निकरीपाकां । ताहां सां डानीमा हे। पदर या । जतियां खझे के पुरिसे वाया दयंदा पहिलयंदा को लालतंडं वह रिजा उपासंग चोरई | विश्वेरीनां परं काकरानी को की जड़ा बाहिरका दीना । नत्रयीमिता सार्या वा विविरेद्यावा सिंदियावा या बिंदिद्यावा परिहविद्यादायगिमिनार वा सारि साही ते सा वशं विपुलधन | लोग सो गवतो ] ] धको |] विचर) |ते | तुम्हे | पुरुषन | किस याय सिद्धिविनलाई सोग सो गाई | सुं जमाए विदरिद्या । तस्मणं च मं पुरिस्मा किं चंदंड दीप बरं हेतगवंत ॐ || तेपुरुषनई (याकोबा | दंडादिककरीन राडीकरी खडगा }} इंमार्फ बांध दिक दंडवतेद्यासि संतेय देतां । तं पुरिमं या उसे द्यावा | दले द्यावा बंधेद्यावा / वधेद्या करानें डोली सरिष्टाचा पेरादिधन्यादिसर्व नष्टवचन किंबहुना जीवतव्य थकी काले चैव जीविया सदान पुत्रकहर पर गानप्रमुषा काल रहितकर वरईस वचन कहा उदालील घा/ तो द्यावा / ता लिद्यावा निबोडिया वा निर्झने द्यावा
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
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