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________________ मई) एतानरूप || दिव्यऋद्दिपी लाभ उठा तपसंयम, बलवीर्यपुरुषाकारपाशं) त्राक्रमपापं । "सर्व ब्रह्मचर्यादिकपाषें हा तिवारी ते कुंड कोलिक डावा पुरिसक्कार परिक्क मे ||मएश्मे यारुवा दिवा देवही लाथी पामी | सनमुषरं रं) श्रावक। [तेदेवताप्र लापत्ता/तिसममा गया ततेां सेकंड को लिए समणो वास तं देवंप |श्मकही उं || जो खंश्म दे देवाएं पिया || चंडम क द ब परवी पवडीदिव्यदेवनामा तेलपर्स जमा तक्ष किती वर्यपाषणं । ॥ वक्यासी| जती देवा सुं पिया | उमेमा नारू वा दिवा देवही अणुंडाणेणं पुरुषाकार पराक्रमक्रिया पाषएव मी ऋषि | लादी | पांमी) सनमुषइलोगिप | न कोई जीव | जावा पुरिस्कार परक्क मे णं लापत्ताच्यति सम लागया| जसिगंजी वाले तपसं मर्यादिक प्राक्रमनी करता ते देवता । लेकिमदेवतान | अधवा हेदेवापिया | उम्हे! नीषिकांनपांमई । ऊती सचिव जावरकामा ले किं नंदेवा ग्रां देवाएं पिया / उमेश
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
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