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________________ मोगलांनोगतीवं बाजत तिवारेपनन्न ०११० स०सम्म सरीका०शक्षादिक विष मीणा इससादिदेहका रोवो०१ स्पो मिराजऋषि इम१० बोओपर यविषविषसरीका कामभोग तर्जन मिराय रिसि देविंदराम छवी ५२ सहांकामा दिसंकामा अनरकादिको मा० मानकरी गतिजाईको को सन्नीयाते बेकरी मा०जाई काका मनोगा० सप नाविनीपमासरीया है कामाश्रासीदिसो लो० लोमश्री इट्लो | के परलोके विष कारेननय मामासक मनुष्या निजी गतिनोपविता श का० कामनो प्र०कॉमनोग पोतेको नदी सांता नोगनाथ काजीवनं कांफोग थकाजीव नीवंगाशंकर जाइर्गत पत्र दमा कामेपचे तारणा यकामा जंती ऽग ५३ अहो वाइको देश माले अदमाग माया गइ पहिग्घानं जोमानऽभयं ॥ जमीनेंमाण्डा वि०चैकियकरी कं० वांदेस्तति अण्या धर्मविस्मयते मनोरूप करतो थकी निजीसी को को दिनफिकण मारुवं विदितं वंदनिरतो इमादिमजरा दिवग्गूहिंप मोर याच विस्मयेते० अ० यावर्यविस्मयते तेनाली वयविस्मयते माननीयो लोलोभवण्यम की पर्छ होते निम्तिनुको हो । विस्मयता वयमयतेते अवर्य विस्मयते मसाजो सान्जोम० मार्दव्पलो तारो 3037 मरण्क्ष मा० माया अहोते माणो पराजि होते निर किया माया होते जो जो इसी कल ५६ होते अन्न वसा अहो ते साम हवं होते उसमारखेर माज्ञयम्वर्यविस्मयतेण्ताद (03 | देवरभवेदो० होदि | वो लोकमां दिनेमुण्ड | सिम्मोक्षगणनाइ सिनीव एएलीपरेशस्त धानापस्थांनक कर्मर जरदितथइनें 4G वतोथ को सितम रान मिरा निर्जे लोम५७ सम्म देगवन् ती प्रोतिमा ५१ इदं सितमोजते पेच्चा दो दिसिउत्तमा लोन मंदाएं सिद्धिगासिनी 4G एवं अभितो रार जरुषिनें न प०प्रदक्षिणक १०वी० वांदेश् ततिदां थीयां चण्क्कनोथाकारक यंक रानो कारन वे नदी साधारकरी रोधको एमेसन्सकेंश्वर दीने लेकीने जे पगबै जेट्नाए दवा मुनि वस्नापगवादीने का सितमएसए पर दिलं करतो। गोलो बंदएसको नदिऊ चक्रंसलरकऐ मुशिवरस्स १ गा चांदीनेंगे० घरवि सा०यापिनेदिषे ६१ विदेहदेवाने सब्जीलासहित्यपॐकं मजबूतिमुकुट जेहने ६० सेमइजेलजियश्ववल के मलतिरी मी ६ नमनाएं सकंसके दो चऊ एगे देविदेही | सामने पलवहिन | ६|| •केंद्रो पद्यमवंत उत्तराध्मानट. निसामेता | देन कारण चोइन थो (४२) 14 छ उस सो गयो मनीव नकरी इंद्रवीर नमी जाना सज्ञा आपोआत्मा ॥४२॥
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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