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________________ नीने० विनाशतानगे जन्मेलका • कायाई। एतले जावज्जीवजगे करी धारे29 |वसरीने उति जलेकाएर २१ अथमेजपरी सददृष्टांता]/ चंपानगरिनंदश्रेष्टितेों) एक दामात्मा चारिणा मलीनगावतोदेति श्रेष्टचिंत वेण्जे नदर्शनमा मेलो शुचि दीजो सर्वन जो दिए एक तसरीदी नहीं इमाकर्मपान्पते खत्समेका लक रीकोसंबी नगरी ये व्यवहारीयानो बेटो थयो । ते याबलान वना उदयधी सरीरीरमहाऽवि ऊपनी जिहां जा इतिहा लोकांना करें। एट्वे एकदा साधनामुषी सानो जेऽपक्षय कर्मक्षय कान सग की हां में तेरी सिद्धांतक्वन मां एक टनी माहिजा एकस्थानक का उसग करी सासन देवता यायौ । ते सासनदेवता ते हनो सरीर सुगंध की धो। कान सगपाडी व्यापणेस्थान के छावे ॥ तो लोकनिंद्य करे एम लोग दिन ताने नावेतो वो तिवारे वेले चिंत मौ देपोलो कतोए केहनानटी यतः येथे रे रंग मिसादा रंग नारंगमुच्यते लोकापवादयिः कथलोको निधीयते लोकद से तेव जी देव तानें आराधी सहज गंध की होतिले जिमकोशेति मबीजी ऋषिस्तरेन करिवेो ऽगंगकर्म है सो उपार्जवन ही मनपरीस दस दिवो सम्यग्रकारे | इतिमन १रीसदेश्रेष्टिमाद् इतिश्रीरमी कथामा परेस दो परिक दी | जे-जे नायक (नतेनी ६ देवीने पे● मेलसहित साहश्ते साधु जो की एक पर मिनेंस कारसन्मान देनेंस कार (सा०राजादिकक करेंगे तथापरमीतान्तेन मस्का इमन कन्दे मु० सावस्या परीसउपजवानो संभवतेनली सत्कार9त्कार नोए तो परीस एक देवेन्न मस्का नि०निज्ञानो यात्रा | रादिकगीकार करे ही २५१९४१३८॥ अनिकायमाएं तो करोबैगथईनें या सपनो देवो सामीकज्जा निमंत| जेताईप हिसे वंति। नितेसिंपेदर मुली 3G अ०जे साहूनें जोनथोमो अज्ञातऊछाहारग| २० मधुरादिक एम्वर सनास्वादने व ना० सत्कारादिकादीये ईश्रवस्त्रादिकनीक वेवेान्सरमादाने विषे पेनान्नइएमीगरसादिकनी थके त०] तयै नदी प०पज्ञा चारदित लोक्तार दिली वानकरेएको साझरते तसा आफ साइ अविचे। अन्ना एसी अली डर से कनागिज्जेता । नाराफत पिपरावं | ३५ महरानगरी;जयसी हरा जातेट्ने इंद्र दशपुरोदितमिथ्याली है| तेयेगोबेरेगंरा जमदेकरीचारिचीयावाटे यावतादेवी गोषगरी जे हवे गुरु गोषधी दे वानी कलतां ते हवे ते ले मस्तक परिपगदी हो। तेवीस्वरूप सानो ध्यान केदी वो निर्दोशन के एदवी प्रतिज्ञाकी धी मादरूं जी व्रतमश्मा राजोए पुरोहि तनापगळेकरी | तेसे पुरोहित नाता के दिल कोईच जैन ही तिहां कोतेय से दिनो स्वरूप कहो तो रुक महानुभावते महात्मा बैते जाम कार निंदासम्म गिये। सत्कारयस कार परी सदसदेवजी सेवक है। भगवन् मिथ्या वेद्यो जोइये यतः साहईयाय पहिलीयंता जिसपर यणस्सध्यदि राचा मेणवारेई १ सानो ज्ञान नो३१६वनो करया द्वारा प्रवर्क्स वादनो बोलणदार जिन क्वननो अद्यापक एनें या शक्ति शिक्षान देतोवि राकऊ वैक्लीसेवक है भगवन् मिथ्यालीनेंसी पदीही जोइये | एक्वन मांजली गुरेवती श्रेष्टिनेंशग्यौ दिवमांश श्रेष्टि यर वै वै सेवकदै एहनें नवो
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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