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________________ द्वि०स्थिति नई आशानत देवजो कनेविषेज जय उपस्थिति अक्षरेसा सागरनी ३३ सा०सागरइ एकवीसनी ३२ वी०दीससा० सागर ની ०प्रापतदेवली कनेविज ज धन्पस्थिति उत्क ष्टी स्थिति भई सान्सागर अवएगंल वीसनी सागरनी a | सेए हिइनवे | आलयंभिजदन्ने अठार ससागरीवमा शव सागराई उचो से हमने पाल्यं मिजदन्ते | सागरान ३०ष्टीय प्राण्यष्टी रणदेवलोक | वी०वीससा० ३४ | बाबावीससा० ॐ० उत्कृष्टी स्थि तिन ऊई दिवेज जघन्यस्थिति सागरती सागरनी तिमण्फुर वीस व सागराक्वीड को से६िइनवे आरमिजदन्ते वीस इसागरोदमा | २४| बावीसंसा गराई नकोसे पहि तदेवलोकने सा०सागर 50 ३५ | तेवीससा० उत्कृष्टरीवि०स्थि | १०१हिजे येवेयक नेवि ०बावीसा० ३६ २० दिषेनजघन्य स्थिति एकवीसनी भिण्ड बेज जघन्यस्थिति सागरनी नवे यमिजदन्तेणं सागराइछवीस ३५ तेवीसंसा गराई | नक्को सेलहि नवे पदमंमिजदन्तेयं बादी ससागरोवमा ३६ च उहीससा० 1. उत्कृष्ट) द्विवस्थि बिबीमायेदेयक नेविवेदे | तेण्तेदीससा० ३७ १० पदवी संसा उ० उत्कृष्टीद्विर्णस्य । तब्वीजायेवेयक सागरनी → बतानीजण्जयम्प स्थिति सागरनी तिम विजजघन्य वीसागराई नकोसे पहिइनवे बिइयं मिजदन्नेलं तेवी से सागरो वमा ३७ वीससा गराई को सेहिइनवे तइयं मजदूर | चन्दनचीससा० २५ ४० बावीस सा० उत्कृष्टरी हि० स्थि| चण्दोथायेवेयकनेविषे सागरनी सागरनी तिन सागरनी सा०सागरपण्यं ति तिनकई सा०सागरस० सतादीसनी चवीस जनघुपस्थिति तेलं चनवी संसाग रोवमा ३८ बीस सागरानो से निवे मिजदन्ते सागरापली सागरासत्तावीस | उत्कृष्ट विइवस्थि | पंपांनमेयेवेयकने सासागर छ उत्कृष्ट वि०स्थिायेदेयक वि भिण्ड तिनक‍ बेनन्नघन्पस्थिति गरस० कोसेल हिनवे पंचमं मिजहलेलं सागरा बच्चीस ३ ४० सागराची सोसेल द्विनवे बमियजदले सागरा सा०सार सारसागर ६५० अगदी सनी विध वीसनी सत्तावी ४र साथसागर०० अ० उत्कृष्ट वि०स्थि ३० सन्सारमायेदेवकने ससागर विवेज जघन्य स्थिति अनीश ४२ तीक्तीस साथ सागरनी सनी गुलजीसनी तिन तुष्टी | सरावीस इधर | सागरा तीनो से हिड्नवे | सतमे मिजने । सागरावरीस ४२ | तीन सागरानको ( ३
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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