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________________ उत्तराध्ययन (२२४) सा०साग ३०३ कृष्टी स्थितिवि० करभगवंते हिοस्थितिआन्ध्रा उपाकर्मनी ० समुड्स०सरीबो नानामसागरोपम दीदीस को को माकोम रोमनी सागरो वृमानको से ए दिया दिया हिच्याउ कम्मर | अंतो मुज हन्तियू २२ ॥ नदद्दी सरेंनामाएं | वीस इको मि कोमी ॥ स नानामकर्मगो० गोवकर्मार्तनी २३ | सि०सगजाइसियने अ० कर्मना अनुभाग | ससगलाइ कर्म | नीउत्कृष्टी स्थिति रसरूपन | नाम गोलाप] क्वोसा तक्ते भी ए० एर्वेकह्या स०सर्व की जीव • इ० अनंत गो२४ ज०जयन्यस्थिति नापल तमे भागे मुरंजह लिया | २३ सिरातनाय ना गावं ति सबै दिए समास बजी वेसु छिय सरूपवि० ए० एकर्मन सं०० कर्ममय विदाने विजय सि० श्रीस्वामीनं ते करेले रेजिममे श्री महावीरदे नीद्यमकरेतवनीनांए वसमीपेसान मोतीति पते तिश्री कम्पय भागे विया लिया। एए सिंस बरे वेद खवणे यजबु तिमि २५ इति श्री कम्पयमीनामतेती कन्या कर्मना जालीनें स्पानोरस प्र ०ले स्पानागं४४ स्पाना स्थानक तुम्हाए एसिकम्माणं नानार्थ समाते । समानकर्मनीकृति ले० स्पा संबंधीय आन० जिमले स्पाले दक्षिक कर्मस्पाकर्मनीस्थित अन्तेजेर कहते कर्माले साध्य की ते नली बोली मात्रा मेनने विवेकले मेनका हिस्, तिमक कमी कहिस्सं निपजानेतेनी कर्मले स्पाकदिमं समज्जा सम्मतं॥ ३३॥ स्पाकहिये वेश् सज्ज यलपवरकाम आजिदकमे | बल्देविकम्मले साणं सुक्सान सोमे० ना० लेस्पानानाम ३० ले स्पा नाव/ फा०जेस्पानाकर सपथ्येस्पाना | हिण्लेसानी स्थितिमीले स्पाइर्मती जेलेस्मानाबोल सुन्साननदेशिष्य गुरुक शुक्रनें करिते श्रतीदिक जे स्पानारस परिमन ने स्पानाजक्ष 9810 जेस्पाईस इति रामवनो देब्रेमेनेंकदितीथकां रहिवेलेस्पा थकेर जोदेतिवारे यागलालवनी जेस्पा परि नानामक भावे दमे |१| नामाइवरपर संगंधा फासपरिणामजरको हिङ्गरवाडी (एमेर साउद श किमले स्पानी०नीज तेन्तेजोज स्पा४१०१४ | ०जेस्पा ना०स्पा नायनामन जिमले | दिवेने स्पानावर्णक हे बेजी०मेघपाली सरीदरीगण पामानासीगसरीपी | लेस्पारका कापोतले स्पाइस्पात तिम बाबही तिम अनुकमेजांदार सदिन बादलाइ निम्तोपम्यादीसेते रि०जारी गस०सरीपी हिण्दानीला कान तिनन्दादेव सुक्का जेसा 53 | नामजद राजीवनिसंकासा गरिगसन्निभा ०गामानाउंगानमिजसरी बी०क० मलेया वर्णय की दिवेनी जलेस्पानो वर्णक है बेनीनी पानी जवानी वेश्वैरल जेरोनिदोष नीवनी काजलसरी बीन०यपनीकी कीस एड्वी कालीजालवी४ जोजेनो ग्रसोग संसरीपी स०सरी बीमाको तिजेनी छो दीसे ते सं०सरी बी खंजजलनयनिना कहने साउसा ||४|| नीजा सोग संकासा चास पिश्चसमप्पमा देलियति६ संकासा नीलर लेस्याव अंक ज० *जयन्यस्थिति २२ என் ||१२४||
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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