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________________ भावभावनेविवेजने को मिले सेते रा०रागेवी चोका० १११पदेशने कुदाली का गलनीति तीतेमार्गनविषे मूळमुण्पांमेतितीव जीवविविनाशमरए | कामभोगने विवेगि०६थको पोते मार्गने काल्पोजिमा हाथी प भाइरस जोगि६ि१वेइति । कालिया व इसे विलासे रागानरे कामगुले सुमि॥ करेणावदिनागेर‍ जेण्जे को दो० मुदोभा व जाली देना [सं० तेनाव व दाना 505देत दो दोष करी स० न०यो मोईना० १रिकामे ही जेवितमापदार्थ एवं परपर सबैले जीव | दस०] पांमेतिष्तीय श्वसरने विषेसेप तेजीवं मेऽण्ड पणे की करी जं०] जीव ( तेनावच्या पराधकर तो नहीसे तेजीवने ९०० रूपरूमा भा० नाव नेवि में जया विदो संसमवेऽतिद्वं । तं सिरक ऐसे नन वेइरकं । अ०एसरीषो कोई जोनू भावन 505 संबंधी संपा हीसे तेजीवकु०करे०एट्यो ६षनाव मु०यांमेाज्ञानी | वे अता जिसे से ऊईप से डरकरस संपीनफ वे रलेलेघ चिण्घलाधकारनेत्रास्त्रे करीतेव पीपरजीवने दी माउ पाईपात्मा भानावत मस् दिनेश 30 नवा नाव पराजाने विषेर० चे वरू कार तेनावनोयर्था जीव१० परजीव नोज अर्थगुणमोटोजा लेते परजीवने पीमा पावे गेकरी १० रुमालाने दण करवा रादिकशी राजदाने विषे संव रूमाना माना नाजीवनें नेपजावेण्डाज्ञानी कि०केशसहितादिकने परिणामेपीम्पोथ को‍ नीमूर्बाऊपने ते लेकी वनोग यावदानेपलेश्क्तनिवाविधे बनो | सोगरुवे विनेदिते १ रिता वेइबाले पीले संजीवने भाव जोगा तदोसेस एजेनकिंविना वंश्वरज्क इसे 00 एंगत रसोरुइरेसिभा ननलीइन पर माईतेलेले द्वेषरूपीयेक भावभावने के पकथामाना वसजी करने चरेकरी मु० साल जेविवरागरहित इतेर बनी सावती जी०जीव प्राण्यावर जीवहिं बाजे न लिप्पईतेल मुली विरागेश नागासागरजीचे चराचरेदि हिलिछे (नावारण वाण परिग्गदे विनाथ वि साक प्यायले ररकणसंनिगे वए संतोषने दो० दोषकरी 5 तेजीव डबी १०पारका भोग देबीनें कीब३ वानेविषे संभोग काले यतिज्ञलाने | नावे तितेयपरिग्गदेव सत्तोव सत्तोननवेऽहिदो से लडही परस्स भावनावने विषे मा०मायासहित मृषावादनोरोन दोन नवे ते०तिहांवि (४ ततेोनेकरी पराभ मोहदोरीना तोबीने१०परियदमेल बाद जाने विषेषजो लोननादो पदोषथी जो मृषाबोले वाने विषेञसंतोषीनें नीची करैपवै कोई तो मायासदिताजे अंतेऽण्डपथ जोहादिलेाययतं ४ तदा नियम प्रदत्तहरिणो नावेयक्तिरसपरिग्गदेय माया मुसलोनदो सात विरका करणहार बेमा०श्मक दैतीर्थकरूप उत्तराध्ययनस्य श्रमफलमा (१२१) नावनो विजोग के क० किग्य की सुष इश्सेवते विगेयक हिंससे | जो०लो मेकरी आमेलोट वित्तयको अल्पे श्र० शादी काकालविण् संतोषी ने किय भावभावनेविषेच्य संतोषी को १० मोटी रिनो परियहमेन तोजीव ननमे 30 संतोष ॥१२२॥ |
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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