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________________ कि‍ क्लेश० नि०निपनावेजण्जे मनोज्ञलोग ए०एसी परेगमागमने विषे उपास 5पमे आदि ने कु०काने 505 निपजावेद ग०५दतोथ को प०६षनावे हनीपथेलि वेडरको परंपरा पकरीऽष्टवि०चिनो जेक सेते जीव धली निबोधक कर्म नेवजी लोप 554 १६६ चित्रोयनिलाइ क्म्म जसे पुलो हो | कारीया दिविपाकर गमनोज्ञ गंधने विषेविरागरदि तइते एएक हीतेऽण्ड नपनली पाईन बरमान जग निमलीईक्री 9०कमलनो १०पोनमन लोकपरलो कुनै विषेण तथ्यको म मनुष्य वि०शोकरदि बनासमूरनीप०लिकरी संसारमादिविलसं०तो निरमाईतिमविक्रमनुष्यनजी पा६० |इड विकागे |१| गंदे विस्तोम एफने विसो गो एडरको दपरंपरेण नलिप्पश्भवमक्के दिसतो | जलेला पुरकरिणीपलासं ६०॥ | जी०जीभरतीमधुरादिक तंतेतीवादिकर सास्वाद तंतेरसनास्वा ददो०देबनोदे ०३/ सन्समोसरी घोना व रागरहित कई पापा धारसनास्वादनेवि | रसना स्वादितेग व्यवजोम्पने गनोदेश बैम जेमनोज्ञरसनास्वा जे मनोज्ञस्सनोस्वा जो०जे कोइ तेनला पासुरसना बेजिन्जी मते गद्दार । | वण्श्मक दैतीर्थकर दमामक दैतीर्थंकर दतेमामक तीर्थंकर जी हा एरसंगद्वयंति राग मा | तंदी समाजा समोय जो तेसुसवीय रागो ६१ र सरस निगदांव | स्वादने विजेते ते सन्वीतरागकहिये ६१ वण्डमकरैतीर्थकर जिजीनने २० रसास्वादमा मुकते रारा गनो देण्टेन सब्जे मनोज्ञर दो ०६१ नोहे० दे० मनोज्ञरसनो २०तीबादकरसनास्तादने विषे अकाले | यदवाजी पचैाइमक देती शंकर सनो खाने ते मा0 म क दैतीर्थकर स्वाद्वैतेामक हैतीर्थकर६२ जोजेको गि० मूर्वामुपमेति तीन एण्पांमेसेवते | यति जिझाएस्संगद्यां वयंति | रागरस देवं समम माऊ दो सरस देन एफ लमाऊ | ६२ र सरस जो गिद्दभुवेऽतिनं काजि रा०रावी बमबीने कांटे | मण्माबजोन०जिम अ०मांसनो० | जो० जे को दो या 5 वारस नास्वाद तेते स्वादयोगविनानास अवसर करी विदीयालीका काय भोगवता नोगियृदीयांमेर जालीनेदेषभावस०पांमेतिन्ती नविवेसे०ले जीवन मेऽण्डरव या वइसे विलासं रागानरे क्सविभिन्न कार | मळे जहाज मिसनोगगिछे ६३ जे या विदो संस मुवे इतिद्वं । तं सिरकरणे से उन वेइडर कं | 505 देत दो ०६ बेकरी स० न०यो मोती वामहरु दिकरस (ए०छलो खरक्त बैजेजीनस एसरी बोबी जोकोमो स्वादन संबंधिनी संपामु०पां | १ले की जण्जीव नास्वादते प्र० अपराधकर तो नथी से ० ते जीवने ६४ रूमार रस नास्वादमे दिये थीसे तेजीवक रैण्हवोद्देवनात मेण्डाज्ञानी जीनविण्म रण उत्तराध्ययनट दिलेसडरको निक्त्त इस्स करके 45 एमे वर्ग (22 दंत दो से लस ए एजे नकिंचिरसंवरज्य इसे ६४ एगंतर तो इरेरसंमि | या जिसे से कई पूर्व से डरकरस पीलमुवेशबार | ननलीपाईन रमाईते ० ते ६ वरूपी रसना स्वाद ने विवेष कर्तेयामा जी०जी कण्व सानेंडा थावरजी वने नि०कारनाश करते० पी० परजीव | येकदरेकरी मुठजे साधुविरागर ति६५) रसतीषादिक नास्वादनी आसाईपवर्त सिंह अवधारका नानीव पण्ड पजा वे बाण्ड ज्ञानी बीमामा || नलिप्पइतेली विरागे । ६५ । रसाएंगा साधु गएय जीवे तो ] चराचरेदिंस इगवे। विनेदिते परिवेश्वावे पी रररणा
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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