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________________ उत्तराध्ययनट. (२२६) अयसम्पादन नन्न दिकनोज से हरनें पोदीनाकर हारनेदण्यांचदीना दमदार सू०समीपे १० मारोगेकरीदी जनजमनिविजाना ये करी रोग को रवानेधरमांदि लक्ष्मण चंदरने सणजे तिटशन मासणारं दमिइंदियां नरागसत्रुधरिसेऽचितं । पराग वा हिरिवोस हे हि । १२ ज हा विराजावस हिस्समूले नर वतेघरमा दिनसको १० एलेते०सीनार | नानी बेहाचारीनेरना नेण्टीनोपनासीनीजान एप बोलवानी सीन मलमाट लोनलीपरे दिवाना निण्घरमाहे जगतोनही नि०तिहार दिवखावादिकनीनाथा भोगनीनीचा हा सीनोट्सवो वदननो बोजव मूसगाव सदीपसा रामेवचीनि जयरसमज्जेन बेजयारिस्सस्वमो निवासो खानरूला दिलास दास नजेवियइंजिय गांगनोमोवाइ०सीनादि पनि दसीनाए तलावांना देवी ने वण्एदनो सायन करे (स्वीर टेकरी स्त्रीनो दर्शन जो दोन अनोपदी मे श्ते मनमो बोपे वांकी जोवो ने विधेनि स्थायीने एसीनो बोबो इत्पादिकरू मोदी से दमन कस बसात ही देवनिश्रेय स्वीनीवोवान करवी हेर्पितवे नहीं वे निष्श्वे २०१० वेदियं वा एतवा इत्री चितं सिनिवेशश्चा | बहुच वस्सेसम णेत वस्सी १४१ सवयच च ॥ अचितवेवक्त्रि कहने कीर्तिन इक्स्त्रीज०जनना आए अदर्शनादिक दि०हित बेस सदाच काण्यनिलापाजावेमनने दायानेते दिलजसकी येरवोलोनी संजमधी करवीएत लावा धर्मध्यानादिकने जो जो पहले निविबेर रक्त एमीनेट्ने १५ हवी देवदेवंगना विकारसहित तित्रिकीस दिए वो सा काइलीजएस्सा रियज्कारण जोगं दिसावेन वेरेर या १५ का मंत्र देवी हि विनू सियाहि नचोड्याखो भइन तिरखुतो ।। तप्तोदी विलासी रतिए कंत स्थान | वि०सी नपुंसकर दितवा० स्थानक मो०मोक्षनाकाबदार संध्या गतिरुपसंसारकीजेनी० बी देबेते न० नथी केर दिनोते २० दिन २० इमजालीने नेनिबे रहियोपुवसाहूने पन्नो६ माम कष्पने दने ६० स्थि सोरो०धर्मन विबेतेने ताथ ट्वी तहादिगंत दियेतिनचा विक्ति वा सो मुलिपस २६) मोरका निकरकीरस विमा वस्सा संसार नीरसहियरसम्म न अनेरोकोई इण्टो हिलोम० ज० जेवी इसी जातिकतादोदिजी बा० ए०एस्त्री संबंधी या संघसंग सु०पचेपेपार स्वी० निशे नऊ इसे० ज०नि०मोटो नीलो लोक विषे ज्ञानी नानीदारी बेस्बीर संबंध सनवारीनें शेष यदि संगत दोट्जानही सासरी तारिसंऽत्तरमखिनो ए| जहिनि बालमोहन १७ एयसंगेस मक्कमिता सुतरोवेवन वंति से साजिदा महासा स्वानीमंग क्योस ननदी उतरवा सरी गंगानका कामनोगती यांचाथ की सबसगलाई जो० लोक ने सब्दे जं०जे काय काय नोड बरोगादि तस्यपनीयादिकक दीसरी वितरतोहिनी प्यवकपनो० निश्वे 5054. वता सहितसर्वलोकनें कमा०मन संबंधीयते मानसी गरफत रिक्षा वो नश्नवेयादि गंगासमा ||१८| का मागिद्दिष्यभवंस्तुरकं । सङ्घस्लोगस्ससदेवगरस | जे काश्यामाएसि ० रामरूपी यो सवै ५०परमवक रेतदीक्षि साना तिने ||१२६||
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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