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________________ सियारतेने सर्व अर्थ नी सिद्ध जावत हिने सुधर्मास्वामी जहपतेक देवे ए०एस० निचे स०सम्म | पूर्ववत् सर्वमनोरंत करे १३ ( ऋ१०परकम अण्मयनो अर्थ | सिल्क इजाकर करे | १३ | एसवसम्मत पर क्क्म्मस्मक यस्स हे समणे गंभीरे दिए यस्मदिए एल पसरूपने द०घणानेद निवांत व श्रीसुधर्मास्वामी जपते का हे जिममे श्री महावीरदेव सभी वे सात स्पोनोमिक १४इतिश्रीसर करिवेक नदयावेकरी कहियेक देस्यो म्परूपमा अर्थमा गुण विसमाठायेनने विषेधमादबारे को तेयमादरहिततेो तप कर वो परूप देवाची दिवा तेनलीत पनोरूपसमायेनने दिये कही येळे । परू दिए देसिए निंदेसिए | अवदंसि ए| तिबेमि | १४|| इतिश्रीसम्म प्रक्कर्मनारायणं एती समं सम्म ॥ २७॥ ज०जे लेषकारे० रा०रामदो पद्देषेकरी स० श्रुति पावेतपतये/तं ते कायमन तो एलर अण्डादामैथुनध व्यापक कर्म [हि] राज्याशपकारी करीनिसानजस्कदै वैदेशिष्म मृषावाद पपरिय जहानागं कम्म राम दोससमज्जियं खवेश्तव साभिरक्क्तंमे गमलो | १| वह मुसावायें। प्रदेश मे परिग्गदो!! रा०रादीनोजनएद जी०एवोनी वईते न०यां पं० स० समितसहि [अ०कश्यरहित वसति जीवजीव तेएहोइनण्याई एण्ड श्रीवि०निवर्सो डानका कर्माखाचीरतिर तिवसति नि०जितेंदरी निसरपुर दिनाकधवार्थी रहित बघ राईमोयल विरन जीवनवासवो पंचसमिति सावनिदिन अगास्वोयनिसलो | जीवोभवणासवो ३ एए नीविरतिमुपनी दिनेविबेरासमदो० देवेकरीस० / खण्यपावैजनजिते मे ०९ कायम मनथको सुप जनिमम मोटा स०संवेथ के जन्न उ०पहिलोपां | विपरीतालक्यादिक व्यतिदीउपर ज्पापापकर्म मनिसा सांजनदेशिष्य मुळ कर्ताथको ขลลลล | वोंली जानवानोगं लीजतेन सिंडविक्या राग दो ससमज्जियं । खवेऽजहा निरक्| तेमेगगमणो सुल |४| जामदा तजागरस | सन्निरुदेजलागमे । उस्सिंव ए० एकारे सं०० एपकर्मनिष्नवा आवतार नवनीको मिना संग यादवो समते ह संख्या कष्कर्म संजयस्सावि पावकम्म निरासवे भवको मिस व यंकम्मं १०१ | २०६३कारे म० / दिवे नापनाना तक अभ्यंतर०१० कार सियादि सत्पर तपेकरी निव यथाऽ६ सोते तपर्णब | तीन वेकरी तक अनुकमे लो०पाली नेतापेकरी नोसोपन०३५ सातवषाए कम्मे सोसावे |५|एवं ॐकारे बाह्यपशिष्ट को तर तपत तिम तव सानिज्जरिक्त सो तवी दरीत परमि० श्रावश्कारनीगो नरीनीति भितेनिकाचरी ररसपरित्यागत५४ / कारे बुण्कयो विद्ये कुत्तो वाहिरतिरोतदा बाहिरो चित्तो एक्मतिरोवो |9||असल मुलो यरिया | भिरकावरिया यरसपरिचान सश्रमण तपस्वी० नगवंतज्ञा | सामान्य प०फलदेशाने नवंतम श्री महावीरदेवे कारे कहो करीजयामो
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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