SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 520 पहिले नीवि निमवेतेति १०६दिलो १०१ दते | से०से बन्दीला सातनां प०पहिलेदण करतांतेपरि | मिοमांहोमादिवार्त्ताक करे रीत नदीत तिम एविल कारेश्ईने एक पहिलो नांगो१०१ गते अयशस्त होते हे १० मिनेह ज०ाथ वाजनपदेशनी मांगोदना नांगा मां दिनो/ वास्तनिर्दोषि सदोष एक करतोषको क०कथाकरे से सर्विसचालि|२८| पहिलेद्ऊतो मिदो कंक इज एवयकदेव | ०धादिप०पत राय नेराने वालीदिइस०अथवा १०१थ्वी काय चा० | तेण्तेन कायदा वा उकायन वन १०१ मिलेल कायती विद्याि रकाशाने कोएकने स्वयमेवापलये १० वाचली लि पकाय स्पतीकायतण्वसकायनो मतको रेते विराधनानोकरदार |देश्वपचरकाणं वाएइ सय पचि २७ वी नकार | तेन दानवास्स इतरसाएं | पहिले दाप्यमतो बल्देपिविराद होण्ड पु०पृथ्वी काय तेते काय का० दायुकायन वन १० मिले| बकायनीविलासना हिने तीजी शेरसीनी विश्क ०पकाय स्पतीकायत यसकायनो | श्मत को करते [ रक्षानोकरदार हो०३२ ततीजीशेषपोरसनिविषेन‍ दो ३०.७वी मान कापतेन दानवास्स इतस्साएं | पहिले दरणा आउ तो बल्देपिरान दो ३२ तयार पोरसीएन जातपायपाली रामदिका कारणस० हिवे कारण क देबे ने०का वेदनाने अर्थ या हार कर वे धातृषा इ० सोधवानवि गगवेषे अपनेथ के३२ / दिकनीवेदनाश्करी वेया क्व करवानी समानतेनीवेया क्च आहार करैसे० राजम सब रमन्त रागमि कारण मिसमुह | ३२ वेगवेशक आहारकरैश 7 इरिया एयर जवाने दिये ततमना जीवतव्यने तिमिले ग्राहा उण्वली ५०धर्मध्यानचिंत नि० साधुवि०धी निसाधी विनापासीनी गवेष | 500 स्थान के 50 आहारकरै४ स्करैषो पालनाने निमित्तेनातपा वक्ने व्यर्थतयांणीगवेवेत्र गामकरे स्थान के आगतिक दि संजमा तदा एव सिटाएलीगलम चिंताए ३३ निधि इमं तो निग्गंधी चिनकरेल बहिदेव ठाणेहिं स्पेते असंजम जोग3] लंघेन सेवते नियंथनियंधी दिनात पीड गवेषणानावस्थान तिकाटपानी दोबण्ड्वर्य श्वावादिकालीन सन्चारी ले होण्संजमवंततेनावस्थानक ३४ कक आरोगऊपने थके 303 १ सर्ग नीमुण्डशिपानवाने दातांतीगवेवेन याने देतेतण्डप करनाने हेते रवी उइमेदि गणइक्कमणाय से दो के अवसग्गो कपने थकेश तितिरक या बंभवेत्तीस प्राणिदया तवदेन ५ सरी संवेषातथाणसाने अर्थ दिवेनातपोलीले विहार करे तिवारे क्षेउनी मर्या व वारकरी ५० १० उत्कृष्टोम अजोय | वि०विहार करै निव | संज्ञामवहनात पाणी गवेवेनदीक्ष दा कदेने समस्त नं०या शदिक उपगरगिट प्रतिलेवेजो लगेजातपांणी साधेनेश् वरेजती ६ खोटाडा ३५ ३५ वसेसंततगंगिक होते चिरक्सापनिचे दिए | १२१६ जो त निहारविहरणमुली ३६ उत्तराध्ययनर अविवद्यासा तदेवा । पदमपांपस (ढ) HUG
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy