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________________ | सन्ते विनीतविष्यते● वैमानीकज्पो च० मूकीनं देवशरीरमलो ट्रीपं० क १० लोढ़ी सिसि देवता का अथवा २०१० ते थी मर तिथीगन्नवन पत्ती मंतरएव जातिना अनो१दियो चाहार करीने जीवदानी इसान्सास्वतो संतमोहीहकर्मजिनसत्तमादि हावीरदेव कर्ने सानोति | देवतायने म०] मनुष्य ज्योतेनली बेधी जेशरीरकपनो कीनें अथवा | कदेवतामण्मोटी नाणी हे कयते करूं |सदेवगंधछ्मगुस्सए | देहेमल कइयं । सिवाहसास देवे वापरण्मदिति |एधमस्वामीनोवचनइतिविनय मेनप्रथमार्थ संरि पहिला अमेननेंविविनय रुश्कान ज्योमे जगते ज्ञान नते ९०९ / ३० जिन सासनने करवोको विनीतने शुरू कार्यकरियानो आदेश दितिपरीसह कपजेते सम्पय्मद मे देवरजीवी तृते-तेलें लेखकारेको विधेवनिवे विमयपदमसम्मले बनणीते बीजार येन वि०२१रीसदनोख) समेते भगवया एवमर कार्य। इदरखा बावीस १०१ / ०श्रमनन्नगतज्ञानवंत का०काइप गोत्रीये १० प्रकर्षे केवन जे० जे साइपरीसदा न जो जि०परिचिन्ते परिसदने जी पीनें रीसदा म० श्रीमदावी देवे | ज्ञानेकरी स्वयमेव साक्षात जो एपा रूममी पेसो० सांतजीने लीने तकरीने निगोवरीनें दिखें |दीसंपरीसदा समांग क्या महावीर का सवेगं पवेइया | जेनिरक् सोचा ॥ नचा॥ जिचा अनिभूय निरकायरिया १० दितो उ०परीसंदेफर स्टेतिवारेनो० क०कंणरवनिश्वा सश्रमातपस्वी भन्नगवंत का०का पगोडी १० कक जे० जे फिरतां जमने विणा सेनरीशिष्ट वीसपरी सदा ज्ञानवृत्तम० श्रीमदा वीरदेवे वलम्पाने साचात्स्वयम्ले वजाएगा साहूप परितो होनोविदले ना करे खजुते बाद संप रीसदा। समणेन गवयामदादीरे का सवेपवेइणजे १०दिमता |० परीसदेकर सुतिबारे दिवेरुक देने २००गलक दिए फिरता मो० संजमने विलासैनदी स्पतेरख• निशेवा बावीस परिस सद्गुरूस सोक्सान जो जिन्परिवि | डान्तेपरी सदने जीती नि નીવે मलीनें लीनें करीनें गोचरीतविषे || निरह||||सोच्नच्ा । जिच्छा अत्तिरुभिरकाटयरियां परिचयंत! | होनोविदले । इमे रखते बावी संपरीसद दास० अन्नगवतीका कारण गोडीये कर्षक जे जेसा परीस सो०सा न०जी जिन्परिवि | अन्तेपरीसद‌ाने जी पाने श्रमण महावीरदेवे वनज्ञांने क्री स्वयमेव साक्षात जाएगा| हाउससमीपें नलीनें लीने तकरी गोबरीने विषे पहि कता | समणेनगवट मदानी रे का सवेोपवेश्य | जे निर सोच्छू नद्या जिद्दा | अनि नूभिरकाय रिटाए | परि फिर 90 परीसदे फर स्पातिक (तेतेपरीसराज दिपप सर्वप्रका] [वि०विषानोपमदमर्वपका तापतोपरी सहसर्व दं०मासमखादिकनीको २०फाटामा सीतनोपरीसर सर्व तो रेनो० मजमनेविषासे नदी मतिनकदेवे रसदेनूनो परिसदर रेसमासविज्ञपाणीनगीचे प्रकारे सहवो पीमायेसर्वप्रकारे सदोष नोपेतवस्तथा प्रकारेट्वो इयंती| पुठोनो विदन्तेनातं जह|| दिगंबा परी सदे विवासापरीसदेउसि परीसदे। दिसमंसय परीसदे ॥ अचेल सीय्वरीसदे
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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