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________________ | सदसते उरी / वर्षमसाध्या महा अनुरूप पंचविषय बनो गक्तोर एकदा परतावेदेवता सोमदेवजी के पास रोगनामे देवता ईशान देवलोकनो | दासी कोईकांमनिमिज्ञे मिजा आम तिना शरीरनी कांतिरूपदेषी सर्वसनामादिदि एकर ही इंइने मिली आपणे देवजो के गयो एट्वे सामानीक देवेशे उत्तराध्ययनटवाग्येो रणे देवतास्पो की मोजे निर्मनरूप संपदा मी तिकारेश्क है एलेजी ईमानत १४ वर्षमास २० दिन १ ही यो तेत्यदेवता (६७ थ्योरुपसंपदा मी क्लीइक्दै एह थी कि रूपनोली हस्तिनाग पुरे सनत्कुमास्क बैतेट्रो के दो रूप नही तसानजी बेदेवतायएस | ददता जोका निमित्तेमनुष्प देवे विश्नो रुपकरी आमा गहने समेवरून निवतारीस्तान करिवारे तेज मर्दा तिट्वे पोली ये कहो। स्वामी वा गया| संस्थामा बैमा रु १जोदा निमित्रे चर्तिको ऊंस्त्रीन करी वस्त्रपहिरी या तिवरेजो ने इमपोनी में कमलनेको। इमक्कव |स्नानकरी व भूषणपहिरीमाथे मुकुटमरी वामस्रावी बत्तीस सहसराजाने परिवारे सिंहासन बैग एवे विश्वरूपदेव माथोहरा वाजागा तिवारेच रुवर्तित एस्पो कार ए तिवारे देवता बोल्या ताहरु १६६श्स्पो ए खोज पिलरूप मे सनत्कुमारक है कि मजां लीये देवता कहै ननोरीकदेशे तिारेसनत्कुमारेपांनपीकल मिसदितदेष्णी चिंतमोक्षणमादिकायादिती जाली संसारनो स्वरूप अनिल विचारवानामा | देस राग समान एतनावका या पोरी झिपर कमांदिवली तोए हनो विस्वास किसी एक हिस्साकांमनी यतरेतनश्त दूरी रजरेटनरी मलवेत की क्वारी व्याधकीट कीटकी जोटसमासे न्यारी रेजीय देहकरे व हानि श्ते पर तोतो हा गतप्यारी देतो तोहित जै गीनिदानपेट तिने न दे की यारी | इमवैरम्परोमी सर्वपरियहमेकी प91ने राज्य सूची | श्रीविनयधरस्ट रिए से दीक्षानी भी सुनंदामुषखरांची या | रागवचन कही विलापका लागी हो स्वांमी म्हनें अंधार चन्दे निराश्रय किम दिन काटस्य यतः माततात वजन जागो | देवर जेम्स संगेव को वसवश्री होइननषि दा ममा ससीम करक राजा रांलीसाथ नमापते ऽमहाराजा वीस गजाने समका | स्वस्थान गयो। सनत्कुमारसामु विहार की यो बहश्तपारगो ग्ररसनिरस आहार करता रोगी समतां अने क्लबकपती विलरोगगलितकष्ट थयो मचना संपथी पेटनार रहै। पिनो वाकी एका यानी मानरूं ( इमनित्य तप करे एकदासमयने विषेत्र के इदेवताच्चागजी संसा करीजेाजने समे सनत्कुमार रोग दीवा से दिन बनकरै । एद वो बीजो को नदी तेातसांत सी बेदेवता परीक्षानिमित्ते वैद्यतो रूपकरी साधुसमी के शादी नेक साधने रोग व कामदितां मातसेवर सध्या एसाइनो सरीर निरोग की जैतोभ जो तेक्वन सांजनी साहू का उस गाडी बोल्पो अहोवैद्य में रोग बेश्का रेजा एप एक शरीर रोग बीजो कर्मरोग उन्हे अहो वैद्य के हो रोगाला समर्थनो तिहारे वैद्य साधूनें कदै एसरी रनोरोग इस्करां तिवारे साधूमहारा मुनोऽमृत शरीर नीविटी अंगुली लेप की देव्ही कंचनवर्ण थइ दिए तो शूर्य कोन ही मादरे कर्म रूपी मामोटी बैतेमेरो यतः कर्मी रोग की शकत जपाचे यशयोग्य फरमाये उदयनाटक की गतिन जाणे सोसवैद्य मेरे मनमाने राहो वैद्य जेन पथ कर्म रोग मिटे ते पचास्वता वो जिसकीये ते वात सांभजी साधुनोमन हद जांणी देवतारूप गटकरी साधूनें वादी प्रसंसाक सम्पतीदेवलो के गया। सनत्कुमारसाधू विणलापवर्ष ॥६७॥
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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