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________________ | कटेवाला ते पात्र धनदेवकदेवतेसा एक दायनदेव साहने ते मी असनादिशक्तिला ने तेनान्पथ मरीन देवनजीव श्रे एक घरिनंदा रोए लीनोश्व नंदद्वेरून तेदांनना फलनोगवे ते वसुदेवयज्ञाननावसथी सीवान कराथी थ्यो तेसंबंध संबंधसान जीजा तिस्मरणऊपनो|| उत्तरायन विवेकपनो आपलपेजिहां रायनी दस्त साला है | विदयामो राजाईदाथी आमोसांजलीने वधायोपार हस्ती थाप्यो। एकदा श्रेलिक काल कीपनी विलको लिक नें विरोधेनासीमिचानक तेविसाला इंगया चेहेम दाराग्ययाप्पो कोलिकेविसाला वीटी मनुष्पकोमिमरणाबुछ म्यापिलवसाला लेवा नहीं नित्यसीवानी के चढती वाहदी ये कोलिक नासहखदायीनामदगजे । को लिकर ने कुपायकरचा पिदाथी सनाने जेमस्वे तेज्ञानेकरी सर्वजांगे तिहारेको लिके को जे को इहाथी नेमारे तेहने नदी सर्व तिहारेएके सुटहान लीची मोली धो दाथीने नेकपा समां कंटक गवियमिश्रित फली चिलकीपिते सर्वग्नफल विचारेतेले रु १छलाइवनिरि ऊपरिविपथ स्वपते करी को इन जोले एकदिन सिंनालजंत्र राष्या एकदिसे सीद राष्या एक दिसेमनुष्पऊसीयार रहे एढवेट्स सी चानर कनदी आत्मा तिलिंस में ट्राछी सर्वदिस रुसी नाली बाइमेन जोली 973 पाएँ तिहारे अंकुसे हाथी वेले विदा थी न चाले तिहारेदल कोसीवान कइलवेनान्याने वेददेवे ने दो मानसी हाथी चिंतनो एद ज्ञानीनजाो तिवारेक्वनसंज्ञास्यो अष्णाचेवदमेयो थका इमविचारी दल विदलने उतारी अग्निमेनंपो मरीदेवगतियांम्पो हलविदा श्री महावीर पासेदी का जी भी पम्पा ॥इति ॥ आन्गरलोकदेवतांज जो कृ० | ने० नकरेक कविनक्वने न० गुरुसमीपे समीपंक्ति ने० निषेधार्थ किया न•संघटो नकरे उ० पोतानी साथने करी थकोनो सु अथवा २०एकांते पुरुनो विधीत१लो सीमादेतां विद्या नवेसेन गुरुनें या जनवेसे वार्यनंविवेन वेसे उन्युरुनी साधनाने संधाराने विषेवेगेरूनेंश्वरन आवाजदारहस्से नेज्नाकया| परनाने व किच्चापिनान जेनरु गाउरु सयले नोपस्फि | दीये नेण्गुरु-नेसमीपेव सूनी १० बांदनी पालीवाली पागप लांबा पसारी न०३मनरदे वार्यादिके वा० ३००बोल्पोन १८ पालीवालीने ऊनबै नेविलन बेसेस०साधू नविन बेसेाथारुसमीपे ‍ अथवा बोलाबोथको रहेक कदाचित ||२८|नेपदविका पर विमंच संजए पाएपसारिएवाविनि विद्वेगुरुतिर आयरिए हिंवा हिंतो । सिलीन रोगावस्था १० प्रसाद की धोक परिपे०5) 305मर व्हेगुरू नेस | (पुरुमे एक वो जायौदा नव्वे सीनरदेक० कदाचि ०किने आ● आ ईपिए मजाले नि मोक्षार्थीको मी पेस०सदा कान२० अथवान वारेश्वलामो (माक्षानादिमाकलयको साधी बुद्दि नक्यापसायही नियागही । उवविद्वेषरू सदा २० प्रान वे तेजवं ते वान निसीएनक्याविकास ||Q||
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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