SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समुद्रपंखी विनन पंखी नेहनें यथाबीज यथावकाश वेदमारिय निमजास तेजीय बालक व नाधिकार उदयउता पृथवी नोवारी चर्मपंनवी प्रमुख जावदश्मक प्रथध्वेंबी सर्वजीपरें 良 परकीनियरी तिसिंहांबी सावगासे से बीए जदा उर परिसप्पा ऐना एवं विजीवादस माता नागानीको महारई अनुक्रम वनाथ वनस्पती काय बसथावर प्राणीयानो निजी कमाहार समामा माउ गाय सिमिच्छादारति अछा बुद्धी व एस्मति कार्य तस घा वारस म्पस जीना मादारतियुत विसरा जावमा पु अपने नानाविध खेचर वेंडी तिर्यययोनीया है कायाघ्ररी बकरें रापिल पोनिया रंजानते शारदियांत मिना विहायां खवश्यं विदियतिरिक जोखिमाणं चम्म परकीयां नादम रकामं दाव रं तीर्थंकरेंक लें जग एकेकयत्व नानाविश्वजो निया नानाविध संव नाना विश्वकर्म नई श्रेय तद्योनिक तस्संनव लो श्म माहे उसका में इहेगनियास तो नामविह जो शिया' नाएादिदसं नवा' नाम विदे बुकमा 'तयोगिता व स्मंनवांत • कर्म्म नई व उपप तित्रा माता नानाविध स्थावर 35 प्रारीरनई विषे प्रचित्त अथवा चित्र का कम्मो वा कम्म निदाए तो कम्मा'ना विहान सघाव राणपोयासरीरं मुसवितै वा प्रविशेसुवा प्रस निश्राई ऊपजै नेविग इमतेजीव नाना विव त्रावर प्रांतीयानों स्नेह आहरई तेजीकमाहार बीनाद्वारा जाव पोनानी २ नो करई क्रायसरी बोकने माल थका बक मा परसारनी शरीर में विद्री सवित्त मनुष्यादि ऊपनाथका जीवइत्यादिकं लाये अपने थाने या विनतिजा वाति सिंना विहारांत मघा वराएं पाएं सियाह माहारति तेजी वा युद्धविसरीरं जाव से तंद आहानें ति मनुष्यपरं नेत्रप्रथावर जोनी यादें मान मंचकादिक बाई पि परशरीरीने शरीर नानावर्स जावइमक मा. विनया सम्मादिक में नायें अपने तियों दिशादिकनें विबें ऊपमा अपज ब विज्ञनेविष विशांत सिं'ना सघावर जोगिया कमांकाने तह थपिने निगम मत्व नानाविध कर्मनाथ जावकर्मन कारणें तिहीं आयी नानाप्रका था वें ऊपजरे जहार छानक कहैं एकेक की माना दिजो निवाता प्रमाण सरीरांना लाथन्ना 'जान' भरकार्य एवैकरू व संनवसाए एवंखुर पना गार' महावरं पुरस्कातं २३ ॥ तियांसचा नारा विदजे लिया 'जावक मम नितकमा नामा विदात जितनेजा हियें पचंद्र नाममा अपज जी सी है निममविज्ञानिनीने श्री विगलें दी ऊपजें निमने नाममा किनें विवेश महारे 32 शरीर नाईजेजी ऊपजे ते स्वखरएका जनमजमूवादिक ने विषई जीवनी अपनी नाशरीरमा नावे सांगाव प्रति || व अपन zanet
SR No.650004
Book TitleSuyagadanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1877
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy